Sawan Somwar 2022: अभी सावन का महीना चल रहा है और सभी शिव की भक्ति में लीन हैं. जानते हो क्यों ? सुख और समृद्धि के लिए…लेकिन क्या केवल सावन के महीने में पूजा अनुष्ठान के बाद सुख की प्राप्ति तुम्हें हो जाएगी ? आइए जानते हैं इस संदर्भ में परमात्मा क्या कहते हैं. एक व्यक्ति ने परमात्मा से पूछा कि कौन सी साधना करें. कैसी साधना करें. जप करें. व्रत करें. अनुष्ठान करें. साधना सिद्धि करें.
क्या करोगे इन साधनाओं को करके…कुछ मिला. तुमने कुछ तो की होंगी. अच्छा उन्हें ढ़ूंढो जो 80 या 90 वर्ष के हो चुके हैं. अब तुम्हारे अपने अपने धर्मां के संत महात्मा…हिंदू के भी…मुसलमान के भी…जो फकीर बनकर घूमते हैं. मौलवी…सिख के..ईसाई के…बौद्ध के…जैन के…उनको ढूंढ़ो. जो 80 या 90 साल से इन साधनाओं को कर रहे हैं. या यूं कहें कि इस मूढ़ताओं को कर रहे हैं. उनसे पूछो तुमने क्या पाया ? तुम्हारे मंदिर के पुजारियों से मत पूछना…उस बेचारे का तो घर ही उसी से चला है. वो क्या जवाब देगा… क्या पाया. क्या वो बोल पाएगा कि इससे मेरी घर-गृहस्थी चली है.
ना मौलवी बोलेगा कि मेरा घर इससे चल रहा है. ना ग्रंथी और ना फादर ही बोल पाएगा. जो अपने घरों में बैठे…जंगलों में बैठे तपस्या कर रहे हैं. ये मूढ़ताएं कर रहे हैं उनसे पूछना…क्या मिला…क्या पाया. अगर वो भविष्य के लिए बोलता हैं कि अगले जन्म में मिलेगा. तो उसके उत्तर की कोई वैल्यू नहीं रहती है. छोड़ देना उसके उत्तर को…उससे कहना खुश रहो अपनी कल्पनाओं में…कोई भी व्यक्ति तुम्हें अपने उत्तर से संतुष्ट नहीं कर पाएगा. क्योंकि उसने कुछ पाया ही नहीं है. पाया इसलिए नहीं क्योंकि यहां उसे कुछ करना ही नहीं. यहां वाकई कुछ नहीं करना था. इस जीवन को जीना था बस.
सुख तो बरस रहा है (Sawan Somwar 2022)
किस लिए साधना करनी है. सुखी होने के लिए…तो सुख तो बरस रहा है यहां और किसलिए साधना सिद्धि करनी…धन प्रात्ति के लिए…तो करो खूब करो और जब धन आ जाए तो बताना…साधना सिद्धियों से और लक्ष्मी पूजा से…यदि धन मिलता तो हिंदुस्तान में गरीबी क्यों रहती…हमारे प्रधानमंत्री को 80 करोड़ लोगों को राशन वितरण क्यों करना पड़ता. कब इन मूढ़ताओं से बाहर निकलोगे. यदि सरस्वती पूजा से ही बोध आ सकता तो…तो हिंदुस्तान के हिंदुओं के सारे बच्चे आइएएस और आइपीएस बन गये होते. लेकिन बोध मेहनत करने से आता है. शिक्षा मेहनत करने से मिलती है. किसी भी देवी देवता के पूजा से इसे नहीं पाया जा सकता है.
जीवन को आनंद से और सुख से भोगो
ऐसा कहकर मैं तुम्हारे देवी देवताओं का अपमान नहीं कर रहा हूं. मैं सीधे तौर पर तुम्हारा अपमान कर रहा हूं. तुम्हारी मूर्खता का आइना तुम्हें दिखला रहा हूं कि तुम क्या मानकर बैठ गये. किन कल्पनाओं में अटक गये. यहां कुछ नहीं करना है. यहां जीवन मिला हुआ हैं तुम्हें…इस जीवन को आनंद से और सुख से भोगना है. उसका उपभोग करना है (Sawan Somwar 2022). यह बात समझ आ गया तो आज ही तुम मुक्त हो जाओगे. वरना फिर कई जन्म ऐसे ही व्यर्थ हो जाएंगे. आज मैं मशाल लेकर आया हूं. उठो और तुम भी जला लो अपनी अपनी मशालें और गला लो अपनी अपनी बेड़ियों को…जो तुमने पिछले 55 सौ वर्षों से अपने ही हाथों में और पैरों में बांध रखी है. तुमने खुद बांधी है किसी और ने नहीं. किसी और का दोष नहीं है. जिस किसी ने भी आरंभ में ये बेड़ियां बनाईं होंगी. वो बेचारा दो रोटी के लिए मोहताज होगा. उसने इसलिए ये बेड़ियां बना दीं. लेकिन तुम तो दो रोटी के लिए मोहताज नहीं हो.
धर्म की हथकड़ियों में जकड़े हो तुम
तुम उठ सकते हो. अपनी बेड़ियों को तोड़ सकते हो. छिन्न-भिन्न कर सकते हो. इसलिए उठो…मैं चला गया तो ना जाने कितने जन्मों के बाद तुम्हें मौका मिले. मैं आज तुम्हें मुक्त करने आया हूं. तुम्हारी इच्छा हो तो आज मुक्त हो जाओ और तुम्हारी इच्छा ना हो तो बंधे रहो. इन्हीं में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन…इन्हीं हथकड़ियों को पहने रहो. और खुश होते रहो कि तुमने कंगन पहने हुए हैं सोने के…. हर धर्म का व्यक्ति चाहे हिंदू हो , मुस्लिम हो, सिख हो, ईसाई हो, बौद्ध हो या फिर जैन…दुनिया में 365 धर्म होंगे. हर धर्म का व्यक्ति मानता है कि मैं अपने धर्म को मानता हूं. राम, कृष्ण, अल्लाह , जीसस, नानक जो भी वह मानता है… जपता है…वह ऐसा समझता है कि भगवान उससे प्रसन्न है. केवल मैं ही भगवान को प्रिय हूं. यह हर धर्म का है. किसी एक की बात मत गिनना.
ये ‘मैं’ केवल अहंकार की ‘मैं’
हिंदुस्तान की ओर का व्यक्ति कहता है मैं हिंदुस्तान में जन्मा हूं. मेरा सौभाग्य है कि मैं देव भूमि में जन्मा हूं. मेरा सौभाग्य है कि मेरा जन्म हिंदू धर्म में हुआ है. हिंदू कुल में…मैं ब्राह्मण कुल में जन्मा हूं. तुम्हें क्या लगता है पाकिस्तान में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने आप को हीन मानता है. या चीन में रूस में जन्मा व्यक्ति अपने आप को विहीन मानता है. कोई भी तो नहीं…फिर ये ‘मैं’ कैसी… फिर ये ‘मैं’ केवल अहंकार की ‘मैं’ और उसी अहंकार को तो छोड़ना है. एक साधना होती है. तुम्हारे ही धर्मों में होती है…. श्मशान साधना….उसमें साधना श्मशान में जाकर करनी होती है लेकिन वो क्या साधनाएं होतीं हैं. वो क्यों की जाती है. उससे होता क्या है. जब ये साधनाएं तुम श्मशान में जाकर करते हो तो वहां तुम्हें जो मुर्दे जलते नजर आते हैं. तो उन मुर्दों के साथ-साथ यदि तुम्हारी आंखें खुली हों तो तुम्हारी ‘मैं’ भी जल जाती है. यह सोचकर कि कल मैं भी ऐसा हो जाउंगा.
जब तुम्हीं गिर गये तो कौन बचा हिंदू
काहे का अभिमान…काहे की ‘मैं’…’मैं’ सिद्ध…’मैं’ धनी…’मैं’ हिंदू…’मैं’ ब्राह्मण…’मैं’ मुसलमान…’मैं’ ईसाई……’मैं’ बौद्ध…उन साधनाओं का मतलब केवल इतना होता है कि तुम्हारी ‘मैं’ भस्म हो जाएगी. जिस दिन तुम्हारी ‘मैं’ भस्म होती है. तुम्हारा अहंकार गिरता है. उस अहंकार के साथ-साथ तुम भी गिर जाते हो और जब तुम्हीं गिर गये तो कौन बचा हिंदू…और कौन बचा मुसलमान…वहां एक नये जीवन का प्रवेश द्वार तुम्हें मिलता है. वहां कोई द्वार नहीं है. ये मत समझना कि वहां कोई गेट है जिसे तुम ढूंढ़ते रहो. नये जीवन के द्वार का मतलब होता है कि नये जीवन का आरंभ…जिस दिन तुम अपनी ‘मैं’ को मार देते हो…उस दिन तुम परमात्मा के राज्य में प्रवेश कर जाते हो जिसका सभी बुद्धों ने वर्णन किया है. जीसस का वर्णन सुना है ना तुमने…जो बच्चों की भांति होंगे. वो मेरे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे. बच्चे की तो मैं नहीं होती है. लेकिन तुम्हारी ‘मैं’ तो बड़ी बलवान है. ‘मैं’ हिंदू…’मैं’ मुसलमान…’मैं’ सर्वश्रेष्ठ…’मैं’ साधक…इन्हीं को छोड़ना है. मैं भी छुड़ा रहा हूं तुमसे…इनको छोड़ो और मुक्त हो जाओ और फिर मुक्त होकर जीवन जियो…वहीं आनंद है. वहीं उत्सव है. वहां तुम्हें उत्सव के दर्शन होंगे. मंदिर या मस्जिदों में नाचकर नहीं…गिरजे या गुरुद्वारों में नाचकर नहीं…
धर्म का चश्मा उतारो (Sawan Somwar 2022)
तुम्हारे अंदर एक नृत्य चल रहा है. पूरी सृष्टी में एक नृत्य चल रहा है. लेकिन तुम देखोगे कैसे..चश्मा लगाये हैं तुमने हिंदू के…मुसलमान के…सिख के…ईसाई के…बौद्ध के…जैन के…घर में अपने दादाजी का चश्मा उठाना. अपनी आंखों में लगाना और भाग के देखना…क्या भाग सकते हो. केवल दो कदम में गिर जाओगे. क्योंकि वो तुम्हारे लिए बना ही नहीं था (). तुम्हारी आंखें वैसी ही ठीक थी. तुम वैसे ही ठीक हो. तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं बना है. ये तो दुकान वालों का हिसाब किताब है. जिन्हें दुकान चलानी है…कुछ भी चला लें.
अंत में केवल इतना ही…चारों ओर फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…