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Hinduism a Religion: क्या हिंदू होना धर्म है? जानें परमात्मा क्या कहते हैं इस बारे में

एक ने पंक्ति भेजी और कहा कि परमात्मा व्याख्या करो…इस पंक्ति की…ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है. शायद ये प्रदीप का भजन है…शायद ना हो…लेकिन ये जिन्होंने भी गीत या भजन लिखे. कोई बौद्ध वहां नहीं रहे होंगे. लेकिन तुमने ये सोचकर सुन लिये कि वो तो गायक है. उसका तो बिजनेस है. तुमने ये सोचकर सुन लिये कि वो तो गायक है. उसको कहां से बोध…जैसे कुछ वर्ष पहले फिल्म आयी पीके…या ओएमजी…इनमें सही ज्ञान था. लेकिन तुमने सोचा ये तो फिल्म बनाने वाले हैं. ये सब तो एंटी हिंदू धारणाओं (Hinduism a Religion)के तहत या सोची समझी साजिश के तहत कार्य करते हैं. तो तुम ज्ञान से चूक गये.

उपरोक्त फिल्मों में सही ज्ञान था. तुम चाहते क्या हो…ज्ञानवान होना…बोधवान होना…प्रज्ञावान होना. या हिंदू होना…मुस्लिम होना…सिख होना….ईसाई होना…धर्मिकता में और हिंदू-मुस्लिम होने में जमीन-आसमान का अंतर है. धार्मिकता पालोगे तो सुखी हो जाओगे. संतुष्ट हो जाओगे. आनंदित हो जाओगे. मोक्ष-मुक्ति को पा लोगे. हां…मोक्ष-मुक्ति…मुर्खता की बातें मत सोचना कि यहां से मरोगे तब मुक्त हो जाओगे या मोक्ष की प्राप्ति होगी. नहीं…इसी संसार में हैं मोक्ष का द्वार या मुक्ति का द्वार…निर्वाण अवस्था…तुम्हें क्या लगता है. बुद्ध या महावीर…मुक्त हुए मरने के बाद…उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. नहीं…मैं कहता हूं कहीं नहीं गये. वो जीते जी मुक्त थे.

मृत्यु के क्षण कबीर की चाह (Hinduism a Religion)

नानक क्या इस दुनिया से जाने के बाद स्वर्ग गये. नहीं…वो यहीं स्वर्ग में थे. जरा उनकी चेहरे की हंसी देखो. चेहरे की आभा देखो. वो आनंद झर-झर झरकता है. कबीर ने अपने आचरण से तुम्हें उपदेश दिया. मृत्यु के क्षण में कबीर बोलते हैं मुझे मकर ले चलो…जहां के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां मरने वाला व्यक्ति अगले जन्म में गधा बनता है. तुम समझ ही नहीं पाये. कबीर का उपदेश था कि मैं यहीं स्वर्ग में था. वो किसी स्वर्ग की आकांक्षा नहीं है. मोक्ष का द्वार यहीं है. लेकिन वो तब मिलेगा जब इस संसार से ऊपर उठोगे. इस संसार को पार करोगे. पार करने का मतलब यह नहीं कि हवाई जहाज से यहां से निकलें और दूसरे ग्रह पर चले गये. जो तुम्हारी सारी किताबें बोलतीं हैं. तुम्हारे सारे धर्म गुरु (Hinduism a Religion) बोलते हैं कि यहां से मरोगे तो विमान तुम्हें लेने के लिए आएगा. विमान किसे लेकर जाएगा जो विमान में बैठने लायक था उसे तो तुम यहीं जला रहे हो फिर वो किसे लेकर जाएगा. और जो अध्यात्मिक देह है. जिसको कबीर बोल गये हैं…उड‍़ जाएगा हंस अकेला…वह हंस कोई पक्षी नहीं है तुम्हारे भीतर…वो हंस तुम्हारे शुद्ध आत्मा का नाम है. वो जिसपर आजतक दाग लगा नहीं…जिसपर दाग लग ही नहीं सकता.

स्वंय को देखोगे जिस दिन असली हीरा समझ में आएगा

वो पुन: उसी विराट में विलीन हो जाएगा. उड़ जाएगा. जहां से वह आया, वो वहीं चला जाएगा. कोई दाग नहीं..कोई धब्बा नहीं. कोई पाप नहीं. कोई पुण्य नहीं. कोई स्वर्ग नहीं. कोई नर्क नहीं. लेकिन ये बोध समझोगे कैसे…ये तभी समझ आएगा जब तुम इस दुनिया के गोरखधंधों से बाहर निकलोगे. इस दुनिया की चाह छोड़ोगे. और खाली धन की चाह नहीं. खाली पद की चाह नहीं…खाली हीरे मोती…इनकी चाह नहीं. बल्कि तुम्हारे हिंदू होने की चाह. तुम्हारे मुस्लिम होने की चाह. तुम्हारे सिख, बौद्ध, जैन होने की चाह. स्वर्ग की चाह. वैकुंठ की चाह. जन्नत की चाह. निर्वाण पद की चाह. इन सब चाह को छोड़ोगे. लेकिन अब चाह छोड़ने भी मत लग जाना. तुम्हारे हाथ में ढ़ेर सारे कंकड़-पत्थर हैं. मैं कहता हूं कि व्यर्थ हैं. तुम संभाले हुए हो…नहीं व्यर्थ नहीं है. जिस दिन स्वंय को देखोगे जिस दिन असली हीरा समझ में आएगा. जिस दिन असली हीरा तुम्हारे हाथ में आएगा. फिर ये कंकड़ पत्थर तो तुम वैसे ही फेंक दोगे.

स्वंय के अंदर छिपे हीरे को पहचानों

इन्हें छोड़ने का मतलब मैं इनके त्याग की बात नहीं कर रहा हूं. मैं बोध की बात कर रहा हूं. स्वंय के अंदर छिपे हीरे को पहचानों…जैसे ही उस हीरे को पहचानोगे…ये कंकड़ पत्थर अपने आप हाथ से छिटक जाएंगे. तुम कर क्या रहे हो. तुम्हारे धर्मगुरू तुम्हें सिखा क्या रहे हैं. वो कह रहे हैं कि धन छोड़ो…पद छोड़ो…प्रतिष्ठा छोड़ो….कहने को तो भाषा में यही बोला जाएगा…धन, पद, प्रतिष्ठा, मान छोड़ो…लेकिन छूटता नहीं है. छूटता तब है जब असली हीरा हाथ में आ जाए…जब तुम स्वंय को पहचान जाओ. वो जो हिंदू का शब्द है ना…अहं ब्रह्मास्मि…पूरा-पूरा ठीक है. वो जो शब्द है ना..दासो हम…पूरा-पूरा मूर्खतापूर्ण है. दासो हम…तुम दास हो…तो कोई मालिक (Hinduism a Religion)नहीं होगा क्या ? जब तुम दास हो तो मालिक तो होगा ना…वो जो मालिक है वो दूर कहीं बैठा होगा. तुम्हारे साथ या सामने तो है नहीं…यानी तुमने द्वेद भाव रख लिया. दो के भाव रख लिया. और जहां दो हुआ वहां विक्षिप्तता हुई. दो में हमेशा ही विक्षिप्तता होगी. दो में हमेशा ही द्वंद होगा. क्योंकि एक दूसरे को पाने की चाह रखेगा.

तन मन सब तेरा..तेरा तुझको अर्पण (Hinduism a Religion)…

यानी एक भाव ज्यादा उत्तम होगा. दो होगी तो दो के कारण ही तो तुम्हारी प्रार्थनाएं जन्मीं…तन मन सब तेरा..तेरा तुझको अर्पण…और फिर मांग लिया मुझे धन दे… संपत्ति दे…दो का भाव हुआ…भीतर के तत्व को जानना है. भीतर के तत्व को जानते ही राग, द्वेष, मोह ये अपने आप छूट जाएगी. इनको भरने से नहीं छूटेंगे कि तुम भर लो. एक मकान है…दस हो जाएगा. तो शक्ति छूट जाएगी. नहीं…एक व्यक्ति के पास दुनियाभर की रोटियां इकठ्ठी कर लो. खाना, पीना, दाल, सब्जी… तो तुम्हें क्या लगता है उसकी भूख की जो तृष्णा है वो समाप्त हो जाएगी. नहीं कभी भी नहीं…वास्तव में इस संसार में तो छोड़ने लायक कुछ है भी नहीं…केवल समझने लायक है. मकान…मकान है…तुम्हें उसकी आवश्यकता है. कहां अपने बीबी और बच्चों को रखोगे. बस समझ गये तो मकान की कोई आवश्यकता नहीं है. गाड़ी…गाड़ी है. कहीं जाना है तो उसमें बैठना पड़ेगा. बैठना है तो खरीदनी पड़ेगी. खरीदनी है तो धन कमाना पड‍़ेगा. बस समझ गये तो कोई अशक्ति नहीं. लेकिन ये सब समझेगा कौन? तो इस संसार को भोगकर पार निकल जाएगा. इस संसार में हर वस्तु को लेकर भी अशक्ति नहीं पालेगा. और जो बेचारा ब्रेड-बटर में लगा हुआ है. उसे क्या समझ आएगी मेरी बातें. वो तो किसी ना किसी मंदिर, मस्जिद, गिरजे या गुरुद्वारे में हाथ फैलाये खड़ा होगा. भिखारी की तरह…यहां से ये मिल जाए…यहां से ये मिल जाए. लेकिन यदि ऐसे मिलता तो हिंदुस्तान कब का अमीर हो गया होता. तुम सभी तो लगे रहते हो मंदिरों में…मस्जिदों में, गिरजे गुरुद्वारे में…करने क्या जाते हो. कोई प्रेम तो तुम्हे है नहीं परमात्मा से. मजनू को तो चारो दिशाओं में लैला-लैला दिखती थी. जिसको प्रेम होता है उसको तो ईश्वर कहीं भी दिख जाता है. और जिसे भीख मांगनी हो उसे आंखों से देखना पड़ता है. जैसे तुम देखते हो…अपने-अपने धर्म स्थलों पर जाकर.

जिधर देखो तू ही तू

जिसे उस अस्तित्व से, उस प्रकृति से, उस विराट से प्रेम हो गया. वो कहता है जिधर देखो तू ही तू है. और कुछ है ही नहीं. मेरा काम केवल तुम्हारी आंखें खुलवा कर जगाना मात्र है. मैं तुम्हें शास्त्रों की कोई कहानियां नहीं सुना रहा हूं. वो सुन-सुनकर तो तुम जाग गये होते. तुम्हारा जागरण हो गया होता…हो सकता होता तो हो गया होता…लेकिन ये आज तक तो हुआ नहीं. आज तक तो तुम हिंदू और मुस्लिम बने रह गये. या फिर सिख और ईसाई बने रह गये. बौद्ध-जैन बने रह गये. लेकिन बुद्धत्व को तो उपलब्ध नहीं हुए. प्राज्ञा को तो उपलब्ध नहीं हुए. वो नृत्य तो नहीं घटा तुम्हारे भीतर…जागरण तो नहीं उपजा…

आज इतना ही…शेष किसी और दिन…चारों ओर फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…

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