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मुक्ति कब मिलेगी ? हम जन्म-मृत्यु के चक्र से कब छूटेंगे ?

मुक्ति !
कई लोग आते हैं पूछते हैं मुक्ति कब मिलेगी ? , हम जन्म-मृत्यु के चक्र से कब छूटेंगे ?, कब इस आवागमन से
छुटकारा होगा ?, कब हमें शाश्वत जीवन मिलेगा ?, कब हम उस मुक्ति वाले ग्रह में पैदा होंगे जहां हमारी दोबारा
मृतुय नहीं होगी ?।
जहां हमें बीमारी , बुढ़ापा , भूख – प्यास कष्ट नहीं सताएंगे।
अब तुम्हें कैसे समझाएं मुक्ति की बात। धारणा ही तुमने गलत बनाई हुई है।
तुम सोचते हो मरने के बाद मुक्ति नामक कोई वस्तु मिलेगी , कोई ऐसा ग्रह है जहां पर मृत्यु नहीं होती हो। वहां तुम
जाओगे तो तुम्हें मुक्ति मिलेगी।
मूर्खता की बातें हजारों तुम्हारी बुद्धि में भर दी गयी है। वो कोई और भरे या तुम भरो। भरोगे तो मूर्खता की बात ही
ना।
तुम्हारा ही तो सिद्धांत है कि जो पैदा होगा वह मरेगा ! जन्म के समय ही मृत्यु निश्चित हो जाती है यह तुम्हारा ही तो
सिद्धांत है। तो तुम यहां से जाओगे कहीं मुक्ति नामक ग्रह पर पैदा होंगे और सोचते हो तुम पैदा होगे तो बड़े नहीं
होगे बूढ़े नहीं होगे बीमारी नहीं आएगी मृतुय नहीं आएगी ?
अपने इस सिद्धांत का खंडन तुम ने स्वयं ही कर दिया।
मुक्ति !
मुक्ति का मतलब केवल इतना है कि पुरानी बिना सोचे समझे , बिना विचारी परंपराओं से , बंधनों से मुक्त हो जाना।
स्वतंत्र हो जाना। स्वयं घोषणा कर देना कि तुम स्वतंत्र हो तुम्हारे ऊपर किसी का कोई भी जोर नहीं है। ना धर्मों का ,
ना मंदिरों का , न मस्जिदों का , न गिरजे गुरुद्वारों का , ना किसी परंपराओं का , ना किसी शास्त्र का , ना किसी गुरु
का , ना किसी बुद्ध का और ना मेरा। किसी का भी नहीं।
तुम स्वयं अपने मालिक हो बस और मुक्त कोई मरने के बाद किसी ने तुम्हें आकर बताया कि वह मुक्त हो गया ?
नहीं ! तुम अनुमान लगाए रहते हो कल्पनाओं में और सोये रहते हो। वास्तविकता का तो तुम दर्शन ही नहीं करना
चाहते।

किताबों ने बोल दिया तुम्हें मुक्ति मिलेगी तुम मुक्त हो जाओगे और तुम भी मानने लग गए। हर कोई मरने वाले के
बाद उसके नाम के आगे लगा देता है स्वर्गवासी , बैकुंठ वासी , नित्य लीला प्रवेश , मुक्त। लेकिन क्या कोई मुक्त
होता है ऐसे ?,
क्या तुम मानते हो ? नहीं !
लेकिन अच्छा भर्म है ताकि मेहनत ना करनी पड़े , ताकि किसी भी प्रकार का कष्ट ना उठाना पड़े। अपने-अपने धर्म
स्थलों में गए अगरबत्ती ,धूप बत्ती , दीपक जला दिया , मोमबत्ती जला दी , सजदा कर दिया और सोच लिया हो गया
धर्म , हो गए मुक्त ? नमाज पढ़ ली और सोचा अब तुम मुक्त हो गए ? अब तुम्हारी जिम्मेदारी पूरी हो गई।
नहीं ऐसी कोई मुक्ति नहीं है। आज तक कोई मुक्ति घटित नहीं हुई है ऐसी और ना ही भविष्य में होगी।
मुक्ति का मतलब होता है स्वतंत्रता ! तुम स्वतंत्र हो अगर तुम यह समझ गए तो तुम मुक्त , अगर तुमने यह घोषणा
कर दी तो तुम मुक्त , अगर तुमने अपनी पुरानी खुटिया तोड़ कर फेंक दी तो तुम मुक्त।
अन्यथा तुम पूरा जीवन लगे तो भी तुम्हें कोई मुक्त नहीं कर सकता।

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