भारत धर्म गुरू है. विश्व गुरू (Vishwa Guru) है फिर भी यहां अशांति क्यों है. भारत में उपद्रव और हिंसा क्यों है. मुझे लगता है कि भारत अपने लिए भी गुरू नहीं है. इसमें मैं भारत की निंदा नहीं कर रहा हूं बल्कि धर्म गुरुओं की कर रहा हूं. आलोचना नहीं कर रहा हूं…निंदा कर रहा हूं. पहले खुद तो गुरू बन जाओ. अपने बोध को तो जगा लो. विश्व को बाद में समझा लेना.
मैं कैसे दूसरे का गुरू (Vishwa Guru)
जो स्थिति भारत में है. धार्मिक संप्रदाय में…शायद ही किसी देश में होगी. हां…पाकिस्तान और बंग्लादेश में ऐसा देखने को तुम्हें मिल जाएगा. लेकिन अमेरिका, कनाडा, रूस जैसे विकसित देशों में यह स्थिति नहीं है. विश्व गुरू…कहने में बहुत अच्छा लगता है. मैंने कई संस्थाएं देखी. तुम्हारे धर्म गुरुओं की. वे विश्व जागृति करने चले हैं. अपने नाम के आगे विश्व गुरू लगाते हैं. जगतगुरु…तुम्हें पता भी है कि जगत कितना बड़ा है.
अनंत लोग हैं और करोड़ों सूर्य हैं इसमें….तुमने जगतगुरू लिख दिया. तुम्हारा स्वयं का बोध जागृत नहीं हुआ. और जगत गुरू…जिसका बोध जागृत हो जाता है वो कहता है कि मैं तो इतना सा तुक्ष्य…मैं कैसे जगत गुरू….मैं कैसे दूसरे का गुरू…
अपने गुरू स्वयं बनो
विश्व छोड़ो…वो किसी दूसरे का भी गुरू (Vishwa Guru)नहीं बनता है. स्वयं को जागृत करो. तुमसे ज्यादा तुम्हारा कोई भला नहीं कर सकता है. तुम्हीं अपने गुरू हो सकते हो. अपने गुरू स्वयं बनो. अपना बोध जागृत करो और भारत जगतगुरू बनकर कहीं जा नहीं रहा है. भारत मतलब हम…135 करोड़ लोग. हम गड्ढे में जा रहे हैं. हमारी मानसिकता घटती जा रही है कि मैं बढ़िया…मेरा धर्म बढ़िया. बाकी सब होने ही नहीं चाहिए यहां तो…दूसरे धर्म की भी यही मानसिकता है.
हम सबका दोष (Vishwa Guru)
तुम भारत को धर्म गुरु कहते हो. भारत थोड़े ना शिक्षा दे रहा है. शिक्षा तो तुम दे रहे हो. धर्म का प्रचार प्रसार भारत नहीं कर रहा है बल्कि तुम कर रहे हो. भारत का तो तुमने नाम लगा दिया कि मैं भारत…अपनी विराटता दिखाने के लिए. मैं भारत नहीं बल्कि हम भारत…यदि हम भारत हैं और तो जो भारत विश्व गुरू है. यदि विश्व गुरू कहलाने के बाद भी भारत अंदर से शांत नहीं हो रहा है तो हम सबका दोष हुआ.
हम सब जो धर्म की बागडोर संभाले बैठे हैं. हिंदू के धर्म गुरू , मुस्लिम के धर्म गुरू,सिख के धर्म गुरू,ईसाई के धर्म गुरू,बौद्ध के धर्म गुरू,जैन के धर्म गुरू,पारसी के धर्म गुरू…मैं भारत पर कटाक्ष नहीं कर रहा बल्कि तुम्हारे धर्मगुरुओं पर कटाक्ष कर रहा हूं. धीरे-धीरे वो तुम्हें उस गढ्ढे में ले गये जहां केवल फिसलन है. वहां से निकलना शायद संभव नहीं है. अगर तुम निकलना चाहोगे तो भी तुम्हें निकलने नहीं देंगे. क्योंकि सबकी रोजी रोटी इसपर चल रही है.
रतन टाटा को बोलो की धर्म की व्याख्या करें
सोचो चार व्यक्ति से तुमने धर्म बनवाया. एक जो धार्मिक वस्त्र धारण करके और देवी-देवता के नाम पर थाली घुमाकर चंदा बटोर रहा है. वो कैसा धर्म बनाएगा. सोचकर देखो. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई किसी का भी…दूसरा वो व्यक्ति जो पढ़ा लिखा है और संसारिक सुख सुविधा में लिप्त रहना चाहता है. भोग करना चाहता है. तीसरा वो व्यक्ति जो पढ़ा लिखा है. दीन दुखियों की सेवा करता है. अगर उसे कहा जाए कि धर्म क्या है तो वो क्या परिभाषा देगा. चौथा उद्योगपति रतन टाटा को बोलो की धर्म की व्याख्या करें.
पुराने अवशेष तुम्हें भी अवशेष बना देंगे
तन टाटा जो धर्म (Vishwa Guru) बनाएगा वो कहेगा कि खूब पढ़ो-लिखो. खूब बड़ा व्यापार करो. देश और देश की जनता की सेवा करो. और अंत में सबकुछ छोड़ दो. तुमने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह निभाई. फूल पूरी तरह से खिला. ये देश के लिए था. अब बताओ तुम्हें धर्म किससे बनवाना है. उनलोगों का पालन करना है जो हजारों वर्ष पहले जंगलों में रहते थे. या आज…मैं कहता हूं कि आज का बुद्धिजीवी वर्ग सामने आये. सभी धर्मों का…सब मिलकर एक ऐसा धर्म बनाए जिससे दुनिया अच्छी तरह से जी सके. पुराने अवशेष तुम्हें भी अवशेष बना देंगे. क्या ऐसा जीवन चाहते हो अपने बच्चों के लिए…
मुझे सुनने वाले…मान लो तुम 30 साल के हो…तुम्हारी आयु 90 साल है. तुम मुझे 60 साल सुनोगे. इस दौरान तुम्हारी दो पीढ़ियां आ जाएंगी. तुम्हारी दूसरी या तीसरी पीढ़ी वाले बच्चे जब घर से बाहर जाएं. तो तुम्हारे मन में यह भय नहीं रहेगा कि कोई विरोधी धर्म वाले उसे घेर लें. ऐसा संसार देकर जाना चाहते हो अपने बच्चों को…
ये हम सबका भारत है
विश्व गुरू नहीं…खुद के गुरू बनो. अपने बोध को जागृत करो. अपना दीपक जलाओ. तब तुम जाकर मंजिल तक पहुंच पाओगे. अपने गुरु बनो. विश्व गुरू की हमें कोई आवश्यकता नहीं है. और विश्व गुरू…हमारा पड़ोसी हमारे अनुसार नहीं चलता है. हमारे घर के व्यक्ति हमारे अनुसार नहीं चलते हैं और हम विश्व को चलाने का ठेका लेकर रखे हैं. तुम खुद के ज्ञान से चलो. यदि तुम ठीक हो गये तो सब अपने आप ठीक हो जाएगा. भारत हम लोग हैं यानी 135 करोड़ लोग…ये चुनिंदा लोगों का नहीं है. हम सबका भारत है. हम सबको ठीक होना है. तभी हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सुंदर संसार देकर जा पाएंगे.
आज केवल इतना ही…शेष किसी और दिन…अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…