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Jagateraho

यंहा अनाड़ी ही धर्म ध्वजा सँभालने का दावा करते है।

यंहा अनाड़ी ही धर्म ध्वजा सँभालने का दावा करते है।

इससे ज्यादा क्या नीचे गिरोगे तुम जंहा तुम्हे जागा हुआ मनुष्य पागल मालूम होता पड़े और धर्मो की खोल में छिपे हुए मदमस्त धार्मिक मालूम पड़े। जितने भी उसके दीवाने हुए उस अल्ल्हा की मोह्हबत में पागल हुए उन्हें संसार भर में पागल की दृष्टि से देखा जाता है और जो ऊँचे ऊँचे धर्म सिंघासनो पर बैठ कर तुम्हे गुमराह  करते है उन्हे धर्म गुरु की दृष्टि से देखा जाता है इससे ज्यादा क्या नीचे गिरोगे तुम।

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता क़ि वो धर्म गुरु हिन्दू मुस्लिम है या बौद्ध जैन। किसी के भी क्यों न हो कार्य तो सभी एक ही कर रहे है। सभी अपनी मै को बढ़ावा दिए जा रहे है अपनी अपनी बात को ऊंचा उठाने में लगे है

लेकिन धर्म तो कुछ और होता है  धर्म मै को बढ़ाने का नहीं मिटाने का नाम है हिन्दुओ मे ब्राह्मण स्वयम को सर्वश्रेष्ठ मानता है लेकिन तुमने कभी आँख खोलकर देखा क़ि ब्राह्मण का तात्पर्य क्या है ?

ब्राह्मण यानि ब्रह्म का ज्ञाता ! तो जिसे ब्रह्म का अनुभव हो गया उसे तो साफ़ साफ़ दिख जाएगा क़ि यहाँ ब्रह्म  के अलावा कुछ भी तो नहीं है एक ही ब्रह्म है।  उसे हिन्दु ब्रह्म कहता है मुस्लिम अल्लाह कहता है  ईसाई god  कहता है सिख हुक्मी कहता है और जिसको यह समझ आ क़ि यहाँ ब्रह्म ही ब्रम्ह है वो क्या दावा करेगा क़ि मै ब्राह्मण हूँ और धर्म के पथ पर चलाना लोगो को धर्म सिखाना मंदिरो को चलाना केवल मेरी ही जिम्मेदारी  है , वो क्या दावा करेगा क़ि शुद्र निम्न है , वो क्या दावा करेगा क़ि मंदिर का महन्त मुझे बना दो , वो क्या दावा करेगा क़ि मंदिर मै महिलाओ का आना वर्जित  है जब यहाँ ब्रह्म के अलावा कुछ  है ही नहीं। 

यह जो दावे कर रहे है क़ि वही ब्राह्मण है, वही धर्म को जानते है, वही योग्य है दान लेने के लिए, वही ईश्वर को संभाले खड़े है, वही धर्म ध्वजो को संभाले खड़े है।  इससे प्रातीत होता है क़ि उन्हें अभी तक ब्रह्म का अनुभव ही नहीं हुआ  है वरना तो जिसे ब्रह्म का अनुभव हो जाए वहां दावा करने  वाला कहां बचता है तुम्हे  कभी नहीं लगता क़ि यह दावा करने वाले बिलकुल ऐसे ही है जैसे जुगुनू बैसाखी लेकर ऊपर उड़ना चाहे और स्वयम के चाँद बनने के घोषणा कर दे।  वो जितना मर्जी घोषणा कर दे लेकिन वो चाँद क़ि छाया के बराबर भी नहीं होगा।

सोए सोए हम सभी को धन से , पद से , प्रतिष्ठा से , तोलते है। एक राजनेता को , एक फिल्म एक्टर  को ,एक धार्मिक नेता को , एक सामाजिक नेता को हम सम्मान देते है।

हाँ तुमने सही सुना मैने धर्म नेता ही कहां आज जिनको तुम धर्म सिंघासनो पर आसीन देख रहे हो वो धर्म नेता ही है और नेतागिरी करना -संचालन करना लोगो को स्वयम के हिसाब से चलाना अपनी वाह वाही लूटना यही तो मंशा है उनकी। वो धर्म गुरु नहीं है धर्म गुरु तो दूर वो तो धार्मिक मनुष्य भी नहीं है वो हिन्दू है ,वो सिख है वो मुस्लिम है ,वो बौद्ध है ,जैन है लेकिन धार्मिक नहीं है । हम सभी को तो इन धन पद प्रतिष्ठा से ही आदर सम्मान देते है हमे उस इंसान में परंमात्मा कहां दिखता है नहीं जिसे ब्रह्म का अनुभव हो गया क्या उसे फिर भी कोई उच्च और कोई निम्न दिखेगा ।

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