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WHAT IS RELIGION AND SPIRITUALITY ?

तुम्हें इंद्रधनुष में और रंग भरने थे।

 

 तुम हमेशा से ही धर्म को जीवन विरोधी मानते रहे हो। घर बार छोड़कर जंगलों में भागना, पहाड़ों में भागना ! यही तो दर्शाता है।

तुम्हारा जन्म मरण से बचने का सिद्धांत यही तो दर्शाता है। तुम ही तो कहते हो कि जीवन में आकर मनुष्य को ऐसे कृत्य करने चाहिए कि परमात्मा दोबारा उसे जन्म ना दें या तुम्हें पुनः पुनः जन्म ना लेना पड़े। तुम ही तो कहते हो कि जन्म में पीड़ा होती है। गर्भ से आते समय कष्ट होता है। मृत्यु में पीड़ा होती है ऐसा कष्ट होता है जैसा हजार बिच्छू डंक मारे। यह सारे वचन यही तो दर्शाते हैं कि तुम्हे जीवन में कोई भी रस नहीं है। तुम जीवन विरोधी ही तो हो।

परमात्मा द्वारा बनाए गए जीवन में तुम्हे दुःख दिखता है। जिस प्रकार तुम सोचते हो जन्म कष्ट है, मृत्यु कष्ट है उसी प्रकार अगर बीज भी यही सोचता तो क्या होता। सोचो अगर बीज सोचता कि मुझे फूटना पड़ता है मेरा खोल

चटकता है बड़ा कष्ट होता है। अगर हर अंडे वाले जीव का अंडा यही सोचे कि अंडे को चटकना पड़ता है अंडे को टूटना पड़ता है। कष्ट होता है तो शायद सृष्टि ही रुक जाए। इतने पक्षी चहचहाते हैं वह सभी मिट जाएं।

एक बर्फ का पहाड़ ग्लेशियर अगर यह सोचे कि व्यर्थ में गर्मी सहनी पड़ती है, पिघलना पड़ता है। यहां सफेद सफेद बर्फ है पानी बनकर नदियों में बहना पड़ता है। लोग गंदा करते हैं, पशुपक्षी भी झूठा करते हैं। लोग कूड़ा करकट डालते हैं। फिर आखिर में जाकर खारे समुद्र में अंत होता है। फिर वंहा से भाप बनकर मिटना होता है। इससे तो अच्छा है यंही पर बर्फ ही बने रहे तो शायद जीवन का चक्र यहीं रुक जाए।

तुम्हारे सारे शास्त्रों में जीवन विरोधी कहानियां तुम ने रच रखी है। तुम्हारे ऋषि मुनि जीवन विरोधी बातें तुम्हें समझाएं गए है और तुममे से कोई भी बुद्धि नहीं लगाता केवल उन्ही सिद्धांतों को पाले जा रहे हो

सोचो आज से 100 वर्ष पहले जब कोई भी व्यक्ति अंतरिक्ष में नहीं गया था तो बड़े बड़े वैज्ञानिक भी यही कहते थे कि पृथ्वी चपटी है, लेकिन जैसे ही वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में जाकर देखा कि पृथ्वी गोल है तो उन्होंने अपने ही पुराने सिद्धांत का खंडन कर दिया। अगर भविष्य में विज्ञान की कोई नई खोज हो और वह पुरानी खोज का खंडन करती हो तो विज्ञान स्वयं अपनी पुरानी धारणा को खंडित कर देगा और नई धारणा को स्थापित कर देगा। लेकिन तुम में से कोई भी इतनी हिम्मत नहीं करता कि वह पुरानी धारणाओं की समीक्षा करें और सारी जीवन विरोधी धारणाओं को गिराकर जीवन के पक्षधर नई धारणाओं को प्रस्तुत करें।

धर्मतुम्हारा धर्म जीवन विरोधी है, इसलिए ही आज तक मनुष्य सुखी नहीं हो पाया है अगर मनुष्य को सुखी होना है तो धर्म जीवन विरोधी नहीं जीवन का पक्षधर होना चाहिए।

ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या यही सिद्धांत है ना तुम्हारा ! ब्रह्म सत्य हैं तो ब्रह्म झूठ कहां से लाया? जिससे उसने इस झूठे संसार की रचना की।

नहीं ! ब्रह्म ने स्वयं ब्रह्म से ही संसार की रचना की।  तो संसार भी सत्य ही हुआ। लकिन धर्म संसार की घोर निंदा करता है। जीवन की घोर निंदा करता है।

मैं तुम्हें कोई तुम्हारे शास्त्रों की कहानियां नहीं सुना रहा हूं। कहानियां सुनकर अगर तुम धार्मिक हो सकते तो हो गए होतेसुखी हो सकते तो हो गए होते। परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते तो कर लिया होता। तुम्हारे भीतर का दीपक जल सकता तो जल गया होता। अब तक तो यह घटनाएं घट गई होती।

लेकिन नहीं ऐसा कुछ भी तो ना हुआ तुम्हारे भीतर तुम तो वैसे के वैसे ही हो। अशांत, उपद्रवी, अहंकारी, धर्म की लाठी का सहारा लेकर चलने वाले बूढ़े की भांति। तुम अपना जीवन ढ़ो रहे हो।

केवल यह सोच कर कि परमात्मा से भूल हो गई। उसने तुम्हें जीवन दिया। अब की बार या तो हम ऐसा कार्य करेंगे कि वह हमें जीवन ही ना दे पाए या ऐसा कार्य करेंगे कि अगली बार किसी ऐसे लोक में जन्म मिले जहां आयु लंबी हो, बुढ़ापा ना आता हो, और साथ में पांच दस अप्सराये मिल जाये जिससे दिन रात संभोग किया जा सके।

ऐसे जीवन को पाने को यहां इस जीवन में कुछ कष्ट सहना पड़े तो सह लेंगे। आखिर कष्ट ही तो सहते है तुम्हारे महात्मा। वो भी स्वयं ही अपने लिए निर्धारित करते है कोई परमात्मा उन्हें कष्ट नहीं देता है।

उसके पीछे सोच यही रहती है कि यंहा कुछ कष्ट सह लेंगे लेकिन भविष्य तो सुखी होगा। बस यही सोच कर तो तुम इस  सुंदर जीवन को नरक बना कर जीते रहते हो।

ध्यान से देखना और सोचना कि मैं जो बातें कर रहा वह पूर्णतया सत्य ही हैं या नहीं?

इतना सुंदर जीवन मिला नासमझो की बातों में आकर तुमने अपने ही जीवन का सत्यानाश कर दिया। तुम्हारी अपनी सोच होती तो भी ठीक था कि तुमने जैसा देखा वंही समझ रहे हो।

नहीं ! तुम में से किसी का स्वयं का अनुभव नहीं है। सभी पुरानी सदियों पुरानी मान्यताओं को ही ढोये चले जा रहे हो। मूर्खता वश ढोये ही चले जा रहे हैं।

तुम हिंदू के घर में जन्मे तो तुमने गीता पुराण के वचन ढ़ो लिए और गलती से तुम मुसलमान के घर में पैदा हो गए होते तो तुम कुरान के वचन ढ़ो कर बैठ जाते। बिल्कुल इसी प्रकार अगर तुम सिख या ईसाई के घर पैदा होते तो तुम उनके ग्रंथों के वचन ढोये बैठ जाते

तुम्हारा स्वयं का बोद्ध कहां है ? तुमने कुछ भी जाना क्या ?

तुमने देखा बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, जीसस, नानक, कबीर सभी ने स्वयं जाना और जिस ढंग से स्वयं के द्वारा जाना उसी ढंग से उन्होंने अपना जीवन जिया।

जैसे बुद्ध ने कह दिया परमात्मा की बात ही मत करो। महावीर कहते हैं व्यक्तिगत आत्मा है। मोहम्मद कहते हैं एक खुदा है उसी से प्रेम करो वही रहमत करता है। जीसस कहते हैं मैं उस परमात्मा का पुत्र हूं। नानक कहते हैं, हुक्मी हुक्म देता है और कबीर कहते हैंअब पीछे पीछे हर फिरे और कहत कबीर कबीर

देखा तुमने सभी के वचनों में जमीन आसमान का अंतर है क्योंकि सभी ने अपने अपने दृष्टिकोण से जाना। लेकिन तुमने तो कुछ भी ना जाना अपने अपने घर में रखी हुई किताबों को पढ़ा और स्वयं मान कर बैठ गए कि तुम सभी जानते हो। बस यही से तुमने अपने ही जीवन में कांटे बो लीए

तुमने बुद्धौ के वचनों को नहीं समझा।

चदरिया झीनी रे झीनी ऐसे प्रेम से ओढ़ी चदरिया जो कि त्यों धर दीनीउस धर्म रूपी चादर को तुमने फूलों से सजाना था, प्रेम के छापे लगाने थे, गुलाब का इत्र लगाना था, जीवन के संगीत को और संगीतमय करना था लेकिन तुमने तो मूर्खता की हद कर दी।

उस पर तुमने लिख दिया घर बार छोड़ना है, पत्नी बच्चे त्यागने हैं, उस पर तुमने लिख दिया कि जीवन पाप है। उस पर तुमने लिख दिया कि यह जीवन दुखालयम है। उस पर तुमने लिख दिया कि यंहा कष्ट ही कष्ट है। उस पर तुमने लिख दिया कि दूसरे धर्म वालों को मारना ही धार्मिक कार्य है। उस पर तुमने अपने ही जीवन को गड्ढे में गिराने का नक्शा बना दिया। क्योंकि तुमने अपने अपने शास्त्रों में यही तो पड़ा है।

होता भी क्यों ना ! सभी ने अपने अपने धर्मों की बागडोर नासमझो के हाथ में दे रखी है। मदारियों के हाथ में दे रखी है।

वास्तव में होना क्या चाहिए था कि बुद्धिजीवी वर्ग सामने आकर एक आँख खोले हुए धर्म की रचना करता और दुनिया को उसी पर चला कर इसी दुनिया में स्वर्ग को स्थापित करता। लकिन यंहा उलटी ही गंगा बह रही है। ध्यान से देखना आज हो क्या रहा है?

आज समाज अपने अपने धर्म गुरुओं को चला रहा है कि उसे क्या बोलना है, कैसे बोलना है, किसके साथ बैठना है, क्या खाना है, क्या नहीं खाना है। किस किताब से बोलना है और किसी दूसरे के धर्म की किताब से तो कभी नहीं बोलना है। यही तो हो रहा है आज।

धर्म !

धर्म तो ऐसा होना चाहिए था कि तुम परमात्मा का धन्यवाद देते हैं और कहते कि हे परमात्मा इतना सुंदर जीवन देने के लिए तेरा कोटि कोटि धन्यवाद और तुम विनती करते परमात्मा से !

कि अगर हमें काबिल समझे तो बार बार हमें यह जीवन देना।

लेकिन नहीं तुमने तो उलाहना ही देना सीखा है। ध्यान से देखना मनुष्य के अलावा पूरी सृष्टि परमात्मा के दिए जीवन से प्रेम ही तो कर रही है। लेकिन एक मनुष्य ही ऐसा है जो जन्म मृत्यु से बचने के उपाय में ही इस सुंदर जीवन का सत्यानाश कर के बैठा है। छोटे से छोटे जीव को ले लो कीटपतंगचिड़िया, तोता, कौवा, चील, हाथी, घोड़ा, घास या ताड़ का वृक्षमीठे पानी के झरने या खारे पानी के समुद्र सभी उस परमात्मा के दिए जीवन का भरपूर आनंद ले रहे हैं और तुम केवल अफसोस मना रहे हो।

तुम्हें जीवन को सुंदर बनाना था तुम्हें इंद्रधनुष में और रंग भरने थे लेकिन तुम सब लग गए उसके इंद्रधनुष को मिटाने। बस यंही चूक किए जा रहे हो तुम।

मैं तुम्हे जीवन का नया धर्म सीखा रहा हूँ जिसमे जीवन का आनंद है ख़ुशी है उसमे इंद्रधनुष के रंग है।

अब सोचना तुम्हे है कि तुम्हे अभी भी दुखी ही रहना है या इस जीवन में, इस धरा में स्वर्ग उतरना है या अभी भी पूरा जीवन दुखी ही रहना है।

WHAT IS RELIGION AND SPIRITUALITY?

What is religion and spirituality?

What is the claim of truth in a person’s life?

Religion!

Religion means to guide peoples in the form of setting up mindsets, rules, faith, and beliefs of followers. All religions guide the human brotherhood. Everyone in this world has an authority to reach the Lord. If we are saying that my religion is the only authentic religion, which means it is not logical. Every person can reach the Lord. The several paths are going towards God. We have to select the one, leave others. We can select only one at a time. Like you cannot drive the two cars at a time. We have to pick one way to reach infinity.

Spiritual!

Spiritual means faith, truth, and belief system that connects with the consciousness or spirit. It is knowing   about our inner-self. It’s a kind of journey of awakening about our inner identity and   its   discovery of self.

Truth in a person’s life

 If, we considered an average life of a human being is full of stress. They spend maximum time in his official work, moving in traffic, and other daily routine tasks. In fact, we are living in a world where the sharp intelligence of human being is destroying everything, press manipulating information, university exploiting knowledge, religion is not encouraging morals, and the doctor is spoiling the health. Everyone has their view or understanding to look into the things. People listen as much as they want to hear. An ordinary person has less time to spend on his family and self- awareness. It is correct to say that we do not know our inner self and blindly follow religion.

If we consider the light of truth in a person’s life. In my view, it shows that there is no difference between religions, spirituality, truth and God.

The same word has many names, some call it religion, some call it truth, some call it God, and some call it Allah, some enlightened Buddha.

Before knowing about religion, spirituality, etc., the search for inner self is important and it can be achieved in the direction of self-awakening.

The parmatmana said no. of times in the past, bring the seeker in time. I will make God stand before his eyes. He says that religion has nothing to do with terms like Hindu, Muslim, Sikh, Christian and Buddhist.

We can live a life as a Hindu or Christian or Muslim mind. But, our Soul cannot follow or belong to any religion. Minds may be different as we have many cultures, refinements, community, societies, and religions.  Each community or different cultures develop a different mindsets.

The word like religion have social origination or derivation and distracting perceptions of people.

In fact, religion is a discovery. Spirituality is a discovery. Truth is a discovery. And that discovery is not from anyone else. Your own discovery of “who you are”? The day you will find yourself, there is nothing left to search that day.

God says that you are running away from yourself. You are searching for god in Temples, Mosques, Churches, Gurdwaras, Pilgrimages, Kaaba. This has neither helped to date nor will it happen in the future also.

No, it is not the path of religion, nor is it the path of spirituality. Religion is only the name of knowing oneself.

And who we are? Some say you are a drop, some say that you are a soul, some say that you are the son of a god, some say that you are a slave. But do you know who you are?

The day you find yourself, you find that you are what you were looking for, what you were searching for, in which you were running in search of “Purna Brahma,” or “Eternal Soul.” In fact, you are truly God. But part of the divine. Just like a leaf is a part of a tree. God is the ocean and we are the drops. So this further argues how a drop can ever become an ocean. A droplet can merge itself with the ocean. A person can achieve his personal freedom by destroying his ego and desire. It is not correct to say that it is the ocean. It can become an ocean…, that’s fine.

parmatmana says that the goal of every human being is to attain the level of intelligence and if you create a new self-image, the way you want to be. If you know enough and can recreate your image, utterly new image, whatever you want. You should be ready to leave the old image, and instead of acting unconscious, you work consciously. You can form an image that provides you the maximum support, an image that will create a lot of happiness around you. It must be portable, you can carry it easily, wherever you go. You can create an image that is the closest to your inner nature. But, it is never recommend you to generate self-image for you which consist of ego.

You have to raise your perception and recognize yourself. Even, you can see the inner nature is peaceful, free of ego, not impressive but too stable and robust. You have to become conscious and bliss. If you know you are something from your previous image, then in such a way it will not be possible. See that there is more love in the new image, what we are creating now is better than what we have earlier. You are that form (shadow) of auspicious divinity. You have to become an observer or evidence of thoughts that usually flow currently from our mind.

Let us take an example; since childhood, we usually look up at the sky. We wished that we could be a part of the sky like a bird and a cloud. We also wanted to fly, and this was not possible. If we were not a river or a bird, how can we make ourselves as part of thoughts? If someone called you Saint or Joker or something else, then you do not start to create the images for you. You are just a witness to thoughts. We can achieve personal freedom in this way.

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