परमात्मा का जन्म अक्टूबर 1967 दिल्ली में हुआं इनका प्रारंभिक नाम विपिन है जिन्हें आज पूरा विश्व परमात्मा के नाम से जानता है। परमात्मा आरम्भ से ही यह मानते रहे कि जिसे वास्तव में ही प्यास लगी हो वो येन केन प्राकरेण अपना कूंआं खोद ही लेता है इसी विचार को लेकर परमात्मा ने सन् 1989 से अपने व्यापार के क्षेत्र में कदम रखा। परमात्मा आरम्भ से ही काफी जूझारु प्रवृति के व्यक्ति रहें उसी कारण व्यापार के क्षेत्र में भी परमात्मा ने काफी अच्छा रुपया कमाया और साथ ही साथ जरुरत मंदो की आर्थिक मदद भी करते गए। परमात्मा हमेशा से ही सरल हद्वय व्यक्ति रहे परमात्मा मानते रहे कि यहां जिस किसी को भी अगर कुछ पाना होता है तो उसे स्वयम् अपने पैरो पर चलकर ही मंजिल हासिल करनी होती है फिर वो चाहे व्यापार हो या धर्म!
1989 से 1997 तक परमात्मा ने एक टी0 वी0 सेट बनाने वाली फैक्टरी चलाई तथा इसके बाद सविर्स इंडस्ट्री में कदम रखा। परमात्मा का काम था लोगो की दूकानों और फैक्ट्रीओं के बाहर लगें फसाड़ की सफाई करवाना।
च्ूंाकि परमात्मा आरम्भ से ही जूझारु प्रवृति के व्यक्ति थे इसलिए इस व्यापार में आते ही चंद ही माह में परमात्मा ने इस व्यापार को बहुत बढा लिया और दिल्ली और आस-पास के क्षेत्र में अपने कार्य का विस्तार किया।
परमात्मा का व्यापार जो चंद रुपयों से शुरु हुआ था अब लाखों रुपये प्रतिमाह पैदा कर रहा था। परमात्मा को आरम्भ से ही आलीशान जीवन जीने का शौंक था तो परमात्मा ने अपने लिए महंगी-महंगी 5 कारे भी रखी तथा साथ ही साथ परमात्मा को प्यास थी धर्म की , ईश्वर की , परमात्मा की , सत्य की , कि ईश्वर आखिर कौन है जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है परमात्मा का हमसे क्या सम्बन्ध है?
इन्ही सब के चलते परमात्मा ने सन् 1995 के लगभग हरे कृष्ण मूवमेंट भी जाना आरम्भ किया वहां 18 – 20 वर्ष बिताए वहां किसी गुरु ने 16 माला का जप करने को कहां तो परमात्मा ने 108 माला रोज की। किसी ने एकादशी व्रत को कहां तो परमात्मा ने 5 वर्ष अन्न का त्याग कर उपवास भी किया।
लेकिन जैसा स्र्व विदित है कि इस प्रकार की मूर्खताओं से कहीं परमात्मा का , ईश्वर का , जीवन का , सत्य का साक्षात्कार होता है? नही! ईश्वर तो इन मूर्खताओं से कोसों दूर है। यह कृत्य तो कीमत हो गई ईश्वर को , सत्य को , परमात्मा को पाने की। और परमात्मा , ईश्वर , सत्य यह तो बेमोल आता है। खैर जैसा-जैसा महात्मा मूर्खता पूर्ण कृत्य बताते जाते , वैसा-वैसा परमात्मा करते जातें। वृंदावन में वास करने को एक बड़ा घर भी बनवाया , परिक्रमाएं भी की , गंगा स्नान भी हजारों बार किया लेकिन प्यास बुझनी तो दूर और बढती ही गई। हरे कृष्ण वाले धर्म कर्म ने नाम पर बस धन का दान लेते रहते थे आपको अपनी भीड़ में शामिल कर अपना घेरा बड़ा बना कर दुनिया को दिखाते रहते थे और प्यास बुझानें के लिए अमृत तो दूर उनके पास साधारण जल भी नही था।
जीवन यूं ही चलता रहा व्यापार से धन बडे जा रहा था और भीतर ही भीतर धर्म का चाह , सत्य प्राप्ति की चाह से खाली पन कचोटता जा रहा था ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि अचानक परमात्मा को एक अघोरी मिला उसका नाम दिनेशानन्द था वो कहता था कि उसने श्मशान की साधनाऐं की हुई है वो परमात्मा को , ईश्वर का , सत्य का साक्षात्कार करवा सकता है। जिसे वाक्ई में प्यास लगी हो उसके पास कोई चारा नही होता या तो प्यासा मरें या जगह-जगह कुंआ खोदता हुआ मरें। मौत तो निश्चित ही है। आगे कूंआ है और पीछे खाई है।
खैर परमात्मा ने फिर से नया कुंआ खोदने की ओर मुख किया और चल दिए फिर से परमात्मा की ईश्वर की खोज में और थाम लिया उस अघोरी का हाथ। उसके साथ हो परमात्मा ने कई प्रकार की साधनाऐं भी की लेकिन सारी की सारी व्यर्थ। ईश्वर , परमात्मा , आत्म साक्षात्कार अगर किसी मोल से मिलने लगता तो सभी को मिल गया होता। लेकिन फिर भी किसी मार्ग के बारे में आंकलन 1 वर्ष में नही हो सकता कि वह सही है या नही। आज समाज में तुम सभी अपना पूरा-पूरा जीवन लगा कर भी आंकलन नही कर पा रहे हो। जो 10 वर्ष से तुमने राम-राम या अल्ल्हा-अल्लाह रटना आरम्भ किया आज तुम 80-90 वर्ष के हो गए और अभी तक यह नही समझ पाए कि यह कृत्य सही है या गलत? इसका फल क्या है? परमात्मा ने भी सोचा कि 3-4 वर्ष देखा जाए क्योंकि हरे कृष्ण वालो के यहा तो सत्य नही मिला आत्म साक्षात्कार नही हुआ आखिर कहीं तो होगा।
कुछ समय अघोरी के साथ रहते-रहते परमात्मा ने जाना कि उस बिचारे गरीब आदमी के पास तो स्वयम् के खाने की भी व्यवस्था नही थी वो तो बेचारा अपनी पत्नी की ही कमाई पर जिन्दा रहता था उसने तो परमात्मा को अपने धर का राशन भरवाने के लिए ही अपने साथ जोडा था और घर परिवार की व्यवस्था और उसकी बेटी की शादी हो जाए इससे ज्यादा कोइ भी तो वास्ता नही था उस अघोरी का धर्म से , ईश्वर से , परमात्मा से , आत्म साक्षात्कार से।
कुछ समय बाद जब उस अघोरी की बेटी की शादी की बात चली तो उसकी चिन्ता को दूर करते हुए परमात्मा ने वो सारा खर्च अपने कंधों पर उठाया। लेकिन 3-4 वर्षों में ही परमात्मा को ज्ञात हो गया कि वो बेचारा तो भीतर और बाहर सभी जगह से खाली है यानि धन से भी और आत्म साक्षात्कार (भीतर) से भी।
तभी परमात्मा को कई बाते पता चली कि वो अघोरी केवल लोगो का धन लूटने के लिए ही धार्मिक वस्त्र धारण किए है जैसा कि आज के समाज में सारे महात्मा कर रहे है। ईश्वर का कुछ भी तो ज्ञान नही था उसे। परमात्मा को यह भी दिख गया कि उस अघोरी ने चमत्कार दिखाने की कुछ श्रुब्ध क्रियाए सीखी हुई है जिसको दिखाकर वह अपने घर का खर्च चलाता है यह सारी क्रियाऐं उसने अपने मूढ़ गुरु निखिलेशानन्द से सीखी थी बाद में परमात्मा को खोज बीन करने से यह भी ज्ञात हुआ कि उसका गुरु भी यही सब काम करता था और उसके 3 बेटे भी अब भी यही काम करते है और लोगों को मूर्ख बनाकर उनका धन लूटते है और भूत-प्रेत नामक भय की दूकान चलाते है।
खेर परमात्मा वहां से भी आगे बढे़-अब तक जीवन की शाम हो चुकी थी और ईश्वर प्राप्ति की दौड़ में दौड़तें हुए परमात्मा भी थक चुके थें तभी थकहार कर दौड़ से बाहर हो गए और किनारें बैठ गए सोचा कि ईश्वर शायद है ही नहीं या हुआ था तो मर चुका होगा। आखिर ऐसे ही खाली बैठे-बैठे नदियों के किनारें , बगीचों में , पेड़-पौधों के पास , पक्षियों के बीच ! एक दिन एक नई घटना घटी – कि प्रकृति जो परमात्मा को आज से पहले मृत प्राय , जड़वत सी दिखती थी वो प्रकृति आज सजीव हो उठी , आज परमात्मा ने देखा पत्ता-पत्ता , वृक्ष , फूल , घांस इत्यिादी ! सभी आज नृत्य कर रहे है और चारों और अपनी सुआस बिखेर रहे है।
वो जो कौआं कल तक शोर मचा रहा था आज वेद ध्वनि गा रहा है वो जो कुत्ता कल तक भौंक रहा था आज ईश्वर के स्वागत में दुंदुभी बजा रहा है। पक्षी , फल , फूल , घास-पात सभी नृत्य कर रहे थे सभी तो सामने खडें ईश्वर का स्वागत कर रहे थें । परमात्मा ने चारो तरफ देखा आज चारों ओर का जीवन बदल चुका था परमात्मा की उम्र के हिसाब से देखा जाए तो जीवन की शाम ढल चुकी थी लेकिन उसी शाम में परमात्मा के भीतर का सूर्य उदय हो चुका था । एक तरफ शाम थी तो दूसरी तरफ एक वो सवेरा जो कभी न ढलने वाला था आज वो सवेरा फिर नया होकर आया था जिस ईश्वर को परमात्मा जन्मों-जन्मों से ढूंढ़ रहे थे वो आज सामने खडा नृत्य कर रहा था फूंलों में , कांटों में , वृक्षों में , घास-पात में , सूखे पत्तों में , कौए और कोयल में! सभी तो जीवन को धारण किए परमात्मा के स्वागत मे नृत्य कर रहे थे और अपने अपने जीवन के लिए इस आसत्तिव के सामने अपना अपना आभार प्रकट कर रहे थें।
परमात्मा को भी उन सभी जागृत को देख देख अपने जागृत होने का अनुभव हुआ कि वो ईश्वर जो सबमे धड़क रहा है वही तो मुझमें भी धड़क रहा है वो ईश्वर जिसे परमात्मा आज तक मृत माटी की मूर्तियों मे खोज रहे थे या आखें बंद कर ध्यान में देखने की मूर्खता भरी कल्पना को अंजाम दे रहे थें वो तो जीवन के रुप में मुझमें और पूरी सृष्टि में समाया हुआ है वो जो जीवन धडक रहा है मुझमें और इस अन्नत विराट में वो जीवन ही तो सत्य है परमात्मा है ईश्वर है। वो जो ऐश्वर्यों का वर्णन शास्त्रों मे आता है वो ऐश्वर्य चारों ओर ही तो बिखरे पडे है । परमात्मा को अपनी ही मूर्खता का आज अहसास हुआ कि वो गलती क्या कर रहे थे वो जो जीवन धडक रहा है भीतर उसे परमात्मा बाहर खोज रहे थे औरों की बातों मे आकर। आज परमात्मा को पता चला कि जिसे वो आज तक खोज रहे थे वो ईश्वर वो स्वयम् ही तो है। गलती क्या कर रहे थे परमात्मा? – परमात्मा मैं ( मैं यानी अहंकार वाला मैं बनकर) बनकर मैं को खोज रहे थे और जब मैं मिटी दौड समाप्त हुइ तो देखा वो सामने ही खडा नजर आया।
आज परमात्मा को ज्ञात हुआ कि वो जो ऐश्वर्यों का ऐश्वर्य है वही तो मैं हूं। आज परमात्मा का वो भ्रम भी टूटा कि ईश्वर प्राप्ति के बाद क्या मिलता है आज उस पक्ति का अनुभव हुआ कि ईश्वर प्राप्ति के बाद कुछ मिलता नही है केवल वो जो मिला ही हुआ था उसका भान हो जाता है और कुछ भी तो नही। हम जिसे जन्म से ही लेकर जन्में थे और भूलें बैठे थे बस वहीं भान हो जाता है।
बस वही ज्ञान आज परमात्मा जग को बांट रहे है कि तुम वहीं हो जिसे तुम खोज रहे हो। पत्थर मिटटी की मूर्तियों में , ईंट गारे के मन्दिरों मस्जिदों से उसका साक्षात्कार कभी भी नही हो सकता। अगर उसे पाना है तो मैं को मारो-मैं यानि अहंकार- यानि मैं हिन्दू , मैं मुस्लमान , मैं ईसाई , मैं सिख। इन सभी को मार दो तो वो तुरन्त प्रकट हो जाएगा।
आज परमात्मा को दुनिया भर में करोड़ों लोग जानते है और परमात्मा के पदचिन्हों पर चलते हुए उस ईश्वर का साक्षातकार कर रहे है और उन सभी ने मन्दिर मस्जिद गिरजे गुरुद्वारे रुपी दुकानों का त्याग सदा के लिए कर दिया है क्योंकि जब कण-कण में वही ईश्वर नाचता गाता दिखें तो कौन भ्रमित हो। उन सभी को आत्म साक्षातकार हो गया है। हाॅ ! वो मूढ़ों की तरह कोइ माला नही जप रहे लेकिन वो मानते है ‘‘अहम् ब्रह्मास्मि‘‘ यानि वो जो तू है वो मैं ही हूं। गलती क्या हो रही थी परमात्मा के साथ अभी तक? वो गलती यह थी कि परमात्मा मैं बनकर तुझे ढूंढ रहे थे और जहां मैं होता है वहां तू प्रकट नही होता है। और यही गलती तुम सभी कर रहे हो तुम सभी भी उसे मैं हिन्दू , मैं मुस्लमान , मैं सिख , मैं ईसाई बनकर ही ढूंढ रहे हो और इसी कारण अब तक खाली हाथ हो।
वो जो शब्द है इन्लाईटमेन्ट उसका द्वार परमात्मा ने आज सभी संसार वासियों के लिए खोल दिया है परमात्मा ने आज ईश्वर प्राप्ति का एक नया द्वार खोजा है परमात्मा उसी मार्ग पर चलकर वहां तक पहुचें है अगर तुम्हें भी ईश्वर तक पहुचना है , आत्म साक्षातकार करना है इन्लाईटिड होना है तो आज ही परमात्मा की अंगूली थाम लो।
Parmatmana was born in October 1967 in Delhi, his old name is Vipin, whom the whole world knows today as Parmatmana. Parmatmanaalways believed from the very beginning that one who is really thirsty always digs his well in some way or howsoever. With this idea, Parmatmana stepped into the field of his business in 1989. From the very beginning, Parmatmanawas a man of struggle, that’s why Parmatmana earned a lot of money in the field of business and at the same time he went on helping the needy people financially.
Parmatmanahas always been a simple and noble person.Parmatmana kept believing that whoever wants to achieve anything here, he himself has to achieve the goals by walking on his own feet, whether it is business or religion.
From 1989 to 1997, Parmatmanaran a factory manufacturing a TV set and then entered the service industry. Parmatmana was serving people to clean the outer facia outside the shops and factories.
Since Parmatmana was a man of struggle from the beginning, so soon after coming into this business, within a few months, Parmatmana increased this business a lot and expanded his work in Delhi and the surrounding area.
Parmatmana’s business which started with a few pennies was now generating lakhs of rupees per month. Parmatmana had a passion for living a luxurious life from the very beginning, so Parmatmana kept five Luxurious cars for himself and at the same time he was thirsty for religion.Parmatmana always evaluates certain questions and wanted to make adjustments to get to the heart of what you want to know? Who is God after all? Is God the Truth? What is the main purpose of life? What is the relation of God to us?
Due to all this, Parmatmana also started the Hare Krishna movement around the year 1995 and spent 18-20 years there, where did a guru say to chant 16 rounds there and Parmatmana did 108 rounds daily. Where did someone tell to observe Ekadashi fast, then Parmatmana gave up cereal food for 5 years and fasted.
But is it well known that such folly does not lead to a realization of the truth about God or life?
God is far away from these follies. But this act become the cost of reaching God/the Truth/ the Supreme Soul. And God / the Truth/ the Supreme Soul is priceless. Well, as the Mahatma used to tell the foolish act, so the Parmatmana used to do it. He also built a big house to live in Vrindavan, did parikramas, did bathing in the Ganges thousands of times.The thirst was not quenched but kept on increasing.Hare Krishna movement used to take donations in the name of religion. They usually added people to their crowd, expanded their circle, and showed the worldand they did not even have ordinary water to quench the thirst.
Just like life was moving forward, money was increasing from business and the desire for religion was growing inside.The inner loneliness was being tormented because of the desire to reach the truth.Such days were passing that suddenly Parmatmana got an Aghori, his name was ‘Dineshanand’.He used to say that he has done the tantra rituals inthe cremation ground and he can help Parmatmana to get the realization of God / truth. The one who is really thirsty has no choice, either to die of thirst or to die digging wells from place to place. Death is certain. There is a ‘well’ ahead and a ‘moat’ behind.
Well,Parmatmana again turned towards digging a new well and went again in search of God/truth and grabbed the hand of that Aghori. Be with him, Parmatmanalearned many types of sadhna but all in vain. If you found God at any cost, everyone would have got it. But still, a path cannot be assessed in a year whether it is correct or not. In today’s society, all of you are not able to assess even after spending your whole life. From 10 years you started chanting “Rama Rama” or “AllahAllah.”Today you are 80 – 90 years old and still cannot understand whether this act is right or wrong & what is its result. Parmatmana also thought that at least 3 to 4 years observation must be done.But Parmatmana did not get the truth from the people of Hare Krishna, nor did he have self-realization, after all, it will happen somewhere.
While living with the Aghori for some time, Parmatmana came to know that Aghori is a poor man who does not even have arrangements for his own food, he lived on his wife’s income, and he asked Parmatmana for his daily food ration arrangement. Aghori was associated with Parmatmana forthe arrangement of the family and the marriage of his daughter.Aghori was no longer concerned with religion/God/self-realization.
After some time, when there was discussionabout the marriage of that Aghori’s daughter, removing his all worries, Parmatmana took all the responsibility of the expenses on his shoulders. But within 3 – 4 years, Parmatmana came to know that the poor person is containing nothing from both inside and outside i.e., even from wealth and self-realization.
Only then Parmatmana came to know many things that those Aghori used to wear religious clothes only to rob the people of money, as all the Mahatmas are doing in today’s society. He had no knowledge about religion and God at all. Parmatmana also came to know that that Aghori had learned some amazing practices of performing miracles, by showing which he earns the expenses of his house, he had learned all these activities from his foolish Guru ‘Nikhilshanand’.Later on searching, another truth in front of Parmatmana that his Guru and his three sons also do the same thing and rob people’s money by fooling them by running a fear shop named “Bhoot and Pret”.
Well, Parmatmana move ahead from there too! Now the evening of life had taken a turn and even Parmatmana got tired of running in the race to search God.Sitting on the shore he was thinking that he got out of this race and it could be that God would not exist at all, or would have ever died before.After all, sitting alone on the banks of the rivers, in the gardens, near the trees, among the birds,
A new incident happened one day
that nature which seemed dead to Parmatmana before, today that nature has become alive. Parmatmana saw that everything is dancing like trees & plants, flowers, leaves, grass, etc., and all-around smiles and happiness spread like waves in the consciousness.
The crow which was making noise till yesterday is singing the sound of Vedas, and the dog which was barking till yesterday is playing the drum to welcome God. All the living beings like animals, birds, & insects, trees were swinging & singing and welcoming by standing in front of God. Parmatmana looked all around, today the life around had changed.
According toParmatmana’s age, the evening of life had set, but in the same evening the sun within Parmatmana had risen.
On one side it was evening and on the other side a morning which was never going to set, today that morning came again as a new God, the God whom Parmatmana was looking for since birth, the God was dancing standing in front of the flowers, in the thorns, in the trees, in the grass, in the dry leaves, in the crow, and in the cuckoo! All of them were dancing and expressing their gratitude for their lives in front of this supreme soul.
Parmatmana also experienced his awakening after seeing all those awakened,
That God who is pounding in everyone, is also pounding in me, that the supremesoul whom Parmatmana was searching till today in the idols of dead soil or were doing a foolish fantasy of looking into meditation with eyes closed.
That life is contained in me and in the whole creation, that life which is throbbing in me and in this infinite vast, that life is the truth, God exists. That opulence that is described in the scriptures, that opulence is scattered all around.
Parmatmanarealized his own stupidity today that what mistake he was doing, the life that is beating inside; under the influence of the words of others, Parmatmana was looking for him outside. Today Parmatmana came to know that the God whom he was looking for till today, is himself.
Today Parmatmana has come to know who is the Supreme Soul, and that is what I am.
Today that illusion of God is also broken that what is available after attaining God. Today Parmatmana has realized that after reaching God there is nothing left, only what he had got, he becomes aware of it and what is there. Whom we were born with since birth and we were sitting there forgetting, it becomes aware there only.
Today only Parmatmana is spreading the same knowledge to the world that you are there what you are looking for.God can never be seen in stone and clay idols, from temples and mosques of brick and mortar. If really you want to find God, then kill the ego ‘me’ i.e., ‘ego’ i.e. I am Hindu, I am Muslim, I am Christian, I am Sikh. Kill them all (kill the ego completely) and God will appear immediately.
Today, millions of people all over the world know Parmatmana and following in the footsteps of Parmatmana, they are realizing that God and all of them have given up shops like temples, mosques, churches, gurudwaras forever, because when you see the same God dancing and singing in every particle, then who gets confused. All of them have become self-realized.
Yes! they are not chanting any rosary like fools, but they believe in ‘AhamBrahmasmi’ that ‘I’ don’t exist, there is only God. I am what you are (God and you are the only difference of understanding). What was going wrong till now Parmatmana was looking for a supreme soul by becoming ‘I’ and God does not appear where ‘I’ exists.
And all of you are doing the same mistake, all of you are looking for God by becoming a Hindu, I am a Muslim, I am a Sikh, I am a Christian and that is why you are still empty-handed.
Parmatmana has opened the door of the word that is enlightenment for all the people of the world.
Parmatmanahas found a new door to reach God today.
Parmatmanahas reached there by following the same path.
If you also want to reach God,then you have to do self-realization and if you want to become enlightened then hold the finger of Parmatmana today.