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परमात्मा के दर्शन कभी नहीं होते

परमात्मा के दर्शन कभी नहीं होते

परमात्मा के दर्शन कभी नहीं होते क्योंकि उसके दर्शन होने का तो तात्पर्य होता है कि एक दशक हो गया और एक दृश्य हो गया, लेकिन ऐसा होते ही तुम्हारी तो धारणा खंडित हो जाती है। क्योंकि धारणा , सिद्धांत , वह तो तुम्हारा यही था ना कि कण-कण में परमात्मा जर्रे जर्रे  में खुदा। तो दर्शक में भी वही और दर्शन में भी वही और दृश्य में भी वही। 

तो बताओ अब आंख आंख को  कैसे देखेगी? मुट्ठी मुट्ठी को कैसे पकड़ेगी।  कैंची कैंची को कैसे काटेगी ? शायद नहीं समझ आया। शायद कभी आएगा भी नहीं।

एक बार जाग गए , एक बार होश आ गया , एक बार परमात्मा मय  हो गए तो प्रकृति अपने सारे राज खोल देगी।

इसीलिए ही मैं बार-बार कहता हूं कि तुम परमात्मा होकर ही परमात्मा को जान सकते हो। और तुम परमात्मा को देखते हो ! नहीं, तुम परमात्मा ही हो जाते हो । उसी भाव दशा पर तो स्वयं ही भीतर से उद्घोष हो जाता है। अहम् ब्रह्मास्मि , तत्वमसि , अनल हक , सोहम ,  शिवोहम।  मैं ही परमात्मा ! और कोई छोटा मोटा नहीं। कोई 5 -7 -12 कला का नहीं ! पूरा पूरा परमात्मा ! उस स्थिति पर ही अनुभव होता है कि यह चांद , तारे , सूर्य , अकाश , इनका सृष्टा  मैं ही तो हूं। इन सभी में – मैं ही तो बह रहा हूं। मैं ही तो बह  रहा हूं उन सभी के भीतर।

परमात्मा का दर्शन नहीं हो सकता, हा  परमात्मा हुआ जा सकता है और यह कहना भी ठीक ना होगा कि हुआ जा सकता है क्योंकि वह तो तुम हो ही। 

हां, यह कहना ही ठीक होगा कि जागा जा सकता है। आंख खोली जा सकती है। मूर्छा छोड़ कर उठ खड़ा हुआ जा सकता है। भ्रम टूट सकते हैं और तत्क्षण यह भान हो जाता है ” अहम ब्रह्मास्मि “!

इस्लाम में वर्णन आता है ना परमात्मा एक है वो खुदा एक है।  इसीलिए ही उन्होंने अपने परमात्मा की मूर्ति नहीं बनाई। क्योंकि  मूर्ति बनते ही बनने से पहले ही खंडित हो जाती है। छैनी हथोड़ा  चलते ही वह खंडित हो जाती है। जब एक ही है तो मूर्ति कैसे बनाये।  बनाने वाला तो दूसरा हो गया। मूर्ति बनते ही वो तो अनेक हो जाती है। सिद्धांत ही गलत हो गया तुम्हारा ! परमात्मा व्यक्ति नहीं है, वह तो तुम्हारे हृदय की एक दशा का नाम है।     

इस्लाम का सूत्र है ए पैगंबर लोग तुम्हें खुदा का बेटा कहते हैं और तुमसे हाल खुदा का पूछते हैं तो तुम उनसे कहो कि वह अल्लाह एक है और वह अल्लाह बेनियास  है। और उसे किसी की भी गर्ज  नहीं है। उसे किसी की भी आवश्यकता नहीं है। यही  धारणा है ना हिंदुओं की ! कि वह स्वयंभू है। बिल्कुल ठीक है। basic thoughts  हिंदू के भी ठीक थे। इस्लाम के भी ठीक थे।  लेकिन दुकानदारों ने सभी कुछ उल्टा-पुल्टा कर दिया। वह! बेनियास है।    

यह जो हिंदुओं की धारणा है कि वो अकारण ही कृपा करता है।

वही तो शब्द है बेनियास।  वह अपनी कृपा सभी पर बरसाए रखता है। वह कंही भेद भाव  थोड़े ही करता है। और यह जो कहानियां तुमने गढ़ी है कि  परमात्मा ने अपनी मौज के लिए जगत बनाया हो तो कथा वाचको की देन है। कथावाचक , पंडित पुरोहित , जो ना करें वही थोड़ा।

आज सोशल मीडिया का जमाना है। हर व्यक्ति अपनी दुकान चलाने के लिए भाति भाति के प्लेटफार्म यूज कर रहे हैं। तो कथावाचक कहानियों का माध्यम यूज कर रहे हैं और कुछ भी तो नहीं है? लेकिन परमात्मा ने मौज के लिए संसार बनाया ये सिद्धांत ही गलत है।    यानी जब मौज नहीं रही होगी, ऐसा भी तो कोई समय होगा। और एक कहानी और बनाते हैं कि मौज भर जाएगी तो प्रलये  आ जाएगी क़यामत आ जाएगी। यानि  फिर एक दिन ऐसा क्षण आएगा जब परमात्मा की मौज  समाप्त हो जाएगी। परमात्मा फिर उदास हो जाएगा।

और कब से मौज कर रहा है परमात्मा। 

एक बच्चे को खिलौने दे दो। 10:- 20 दिन में वो उस खिलौने से ऊब जाता है। तुम्हारे परमात्मा की मौज खत्म नहीं हुई ? एक ही खिलौने से मौज किए जा रहा है। एक ही कहानी से , एक ही शास्त्र से , ऊब  नहीं जाते हो तुम ? नहीं ! वह अपनी मौज के लिए नहीं तुम्हें सताता और ना ही तुम्हें बनाता है। 

 वह तो तुम पर कृपा करने के लिए , तुम्हें आनंद पूर्ण जीवन देने के लिए ही तुम्हें बनाता है। तुमही को जीवन दुख दिखता है। यह तुम्हारी ही गलती है और जिन्होंने तुम्हें सिखाया कि जीवन दुख है। यह उनकी गलती है।

दुखालयम !  यही सिद्धांत है ना तुम्हारा ! दूसरी तरफ एक धारणा है

बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम”      

उसका स्वभाव है। रहमान होना रहीम होना । बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम

परमात्मा ने स्वयं की मौज के लिए तुम्हें नहीं बनाया। तुम सभी मिलकर ही परमात्मा हुए हो। हजारों हजारों पुर्जो से मिलकर एक कार – कार बनती है।

कार ने पुर्जो  को अपने भीतर दुखी करने के लिए नहीं लगाया और ना ही किसी पुर्जे  को कार ने घिसने  के लिए ही अपने भीतर लगाया। अगर यह पुर्जे ही ना हो तो कार – कार  नहीं रहेगी। वह बेशर्त कृपा करता है। मोहम्मद की यह बहुत बड़ी अनुभूति है। मोहम्मद की कृपा है कि मोहम्मद ने ये वचन  अपने भीतर से बाहर आने दिए।  ताकि मनुष्य सही राह पर चल सके और एक आनंददायक जीवन जी सके।

परमात्मा , प्रकृति कभी भी भेद नहीं करती कि सूर्य की रोशनी नाली  पर पड़ रही है या नदी पर।  आस्तिक  पर पड़ रही है या नास्तिक  पर। लेकिन तुम तो ऐसे भाषा बोलने वालो का विरोध करते हो।   तुम तो मेरा भी विरोध करते हो। होगा ही! क्योंकि सोने वालों को जब जगाओगे तो वो भड़केगा ही।         

मैं तुम्हे तुम्हारे मूढ़ धर्म गुरुओ कि तरह कहानिया सुनाकर नहीं बहलाता। मैं तुम्हें जीता – जागता , हंसता – गुनगुनाता !धर्म सिखाता हूं।    

जैनियों के  24 तीर्थंकर हुए जब तुमने  महावीर के कानों में कील ठोके  तो बाकी 23 के साथ भी तो वैसा ही व्यवहार किया होगा और 24 के 24 सत्य थे। लेकिन  ब्राह्मणों ने तो उनके तीर्थंकर होने का पुरजोर विरोध किया ही होगा।  जीजस के  साथ भी यही हुआ।  नानक को गांव वालों ने भला  बुरा कहा।

बुद्धों कि मस्ती  संसार को कभी भी रास नहीं आती। आज तुम मेरा भी विरोध कार रहे  हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन कुछ तो जागेंगे।  जागना निश्चित है।

तुम भेड़े  बनाए जाओ। मैं भेड़ों को तुम्हारे बेड़े  से निकालकर मुक्त करता जाऊंगा। करोड़ों की , अकलमंदो की भीड़ में कभी कभार  कोई ना कोई पागल आ ही जाता है। तुम्हें मुक्त करने के लिए। कोई एक पागल पैदा हो ही जाता है। तुम्हारे भीतर खलबली पैदा करने के लिए। तुम धर्म में कर क्या रहे हो?

कर्म को अकर्म  में बदल रहे हो। अकर्म  करने वाला भी तो कर्ता ही हुआ ना।

कर्म कहां छूटा? इसीलिए मैं कहता हूं। जब तुम हार जाते हो कर-करके , थक  जाते हो कर करके। तभी तुम वो कृत्य छोड़ते हो।  और जैसे ही तुम कृत्ये छोड़ते हो कर्ता का भाव स्वयं गिर जाता है। वहीं साक्षी का जन्म होता है तथाता  भाव का जन्म होता है। तुम जितना भी साधना के क्षेत्र में कुछ करते जाते हो, उतना ही तुम मजबूत होते जाते हो। उतना ही तुम्हारी मैं  बढ़ती जाती है। तुम्हारा अहंकार बढ़ता जाता है। और  तुम्हारी हार होते ही तुम असल में पूरे पूरे उसके शरणागत होते हो। शरणागत होते ही तो वह प्रकट होता है। तुम सोचते हो परमात्मा ने तुम्हें दुखी बनाया।  भूल में हो।  यह दुःख तो तुम्हारे ही बनाए हुए हैं। कि उसने तुम्हें बिछोह दिया है।  उसमें कोई बिछोह नहीं दिया तुम्हें। वह तो वहीं तुम्हारे सामने ही विराजमान है।  ना कोई घूंघट , ना कोई पर्दा।  परमात्मा पर्दे में नहीं है। तुम्हारी ही आंखों के सामने पर्दा है। तुम्हारे होने का पर्दा।

अब वंहा मैं का पर्दा मानो या हिंदू , मुस्लिम , सिख , ईसाई , धर्मों का, भक्त का , सिद्ध का , साधना का , कर्ता का , त्यागी का , पद प्रतिष्ठा का , किसी का भी।  लेकिन है तो तुम्हारा ही होने का।  वही दूर करना है तुम्हें। तुम्हारा मिटना हो जाए,  तुम्हारा गलना  हो जाए और  उसका उत्तरना हो जाए।

आरंभ में धारणाएं जो जो बुद्धों  ने बनाई बिल्कुल ही ठीक बनाई। किसी बुद्ध ने कोई पुस्तक नहीं रची। जैसा जैसा समय की आवश्यकता पड़ी। बुद्ध ने कुछ ना कुछ सूक्त तो दे दिए !जरूर दिए ! लेकिन पुस्तके नहीं रची। बुद्धों  के जाने के बाद उसी धर्म के पंडितों ने सूक्त को लिया और पुस्तके रच दी। उसमे 2-4 फूल तो बुद्ध के थे लेकिन पुस्तके तो पंडितो ने ही रची।  बुद्धों के कुछ वचनो को पंडितो ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया और धर्म शास्त्र बन गए। इसलिए ही उसमे से आत्मा खो गए। सार खो गया। कुछ वचन जरूर बुद्धों के ही थे लेकिन बुद्ध के विचार खो गए तुमने छिपा दिए और तोड़ मरोड़ दिए। तुम्हारे ही विचार उभर कर आ गए।

अहम ब्रह्मास्मि यह विचार किसी बुद्ध के हैं, लेकिन तुमने इसके साथ क्या किया। तुमने इसे मंत्र बना दिया। कण कण में परमात्मा यह उद्घोष किसी बुद्ध का था। तुमने 33 करोड़ देवी देवताओं की कल्पना कर ली। जर्रे जर्रे में खुदा यह विचार किसी बुद्ध का है। तुमने स्वपन बना लिया  कि पूरी दुनिया इस्लामिक हो जानी चाहिए।

पंडित पुरोहित जो ना करे वही थोड़ा।

वास्तव में तो तुम्हें किसी भी बुद्ध के विचार कॉपी  नहीं करने चाहिए थे। तुम्हें उनके साथ एक होना चाहिए था। जिस प्रकार हजारों पुर्जो  से मिलकर कार बनी लेकिन किसी एक पुर्जे का नाम कार  नहीं है। उसमें से दो चार पुर्जे निकाल भी दें तो भी वह कार – कार  ही दिखेगी, लेकिन उसमें से आत्मा खो जाएगी , जीवंतता खो जाएगी। उस कार की संपूर्णता में ही उसकी आत्मा है और उसी संपूर्णता का नाम ही कार  है।

उसी प्रकार अगर तुम परमात्मा की बात करते हो। पूरे अस्तित्व की संपूर्णता का नाम ही परमात्मा है। उसमें अच्छा भी है और  बुरा भी। छोटा भी है और  बड़ा भी।  भला भी है और  बुरा भी।  कुत्ता भी है और यह गाय भी।  कोयल भी है और कौवा भी। बुद्धों  ने जिस संसार को परमात्मा कंहा वो उस संसार कि  समग्रता में ही कहां है। वह अच्छा अच्छा देखकर नहीं कहा है।          

यह तो पंडित के वचन है की गाय में 33 करोड़ देवी देवता का वास है और कुत्ते में नहीं। परमात्मा में सभी का वास है और सभी में परमात्मा का वास है।

सोचो कि दूर अंतरिक्ष में कंही कोई एक ऐसा गृह हो जहां हवा पानी पड़े जीव परंतु कुछ ना हो। तो तुम वहां यह सिद्धांत दोहरा पाओगे  कि कण-कण में परमात्मा ? नहीं ! वंहा तुम्हे अड़चन होगी। कण-कण में तात्पर्य धूल के कणों से नहीं है। कण कण का तात्पर्य भिन्नता से है। जर्रे – जर्रे  का तात्पर्य कोई कंकड़ पत्थर से नहीं है। जर्रे – जर्रे  का तात्पर्य है तुम्हारी भिन्नता।  यानी सभी में उस अल्लाह का वास है। हिंदू में भी , मुसलमान में भी , मंदिर में भी,  मस्जिद में भी , काबा में भी , काशी में भी। लेकिन बुद्धों के वचन है जब तक तुम बुद्ध ना बन जाओ तब तक तुम्हें समझ ही नहीं आएंगे। वह जो खुदा है पूरी खुदाई में है तभी तो खुदा है।         

वो अगर एक ही मस्जिद में हो , एक ही मंदिर में हो , तो कोई उसे खुदा नहीं कह पायेगा । पूर्णता में ही उसका निवास  है। समग्रता में ही उसका निवास है। अगर तुम्हें भी उसको देखना है तो उसकी समग्रता में उसे देखो आज इतना ही।

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