एक ने पूछा कहता है परमात्मा मुक्ति क्या है ? क्या तुम जो कहते हो कि सारे धर्मों को छोड़ दो (Who is Hindu)…सारे शास्त्रों को छोड़ दो…सारे विचारों और परंपराओं को छोड़ दो…तो क्या हम तुम्हारी बात मान लें. तो हम मुक्त हैं. नहीं…फिर वही गलती कर रहे हो जो तुमने जन्मों-जन्मों से की है. पिछले 5000 वर्षों से जितने भी बुद्ध आये. उन सबने तुम्हें मुक्त करने की कोशिश की. मैं भी वही कर रहा हूं कि तुम भी किसी तरह मुक्त हो जाओ. लेकिन तुमने गलती क्या की कि तुम मुक्त करने वाले के बंधन में बंध गये. और यही तुम आज करना चाह रहे हो.
स्वंय घोषणा करो अपने खड़े होने की (Who is Hindu)
तुम्हारा प्रश्न था कि क्या तुम्हारी बात मानकर उनको छोड़ दें. मेरी बात मानकर…यानी मुझसे बंधकर…नहीं..अपने बोध के द्वारा उसको भी छोड़ो और मुझको भी छोड़ दो. स्वंय मुक्त हो….अपनी घोषणा करो. बुद्धों ने हमेशा ये कोशिश की कि तुम किसी तरह उस विराट का स्वाद चख लो. उस विराट का अनुभव कर लो कि तुम हो क्या…तुम कोई हिंदू की बैशाखी लेकर खड़ा है तो कोई मुसलमान की…कोई सिख की तो कोई ईसाई की…कोई बौद्ध की तो कोई जैन की. तुम उनकी बैशाखियां गिराओगे और मेरी बैशाखियां ले लोगे…तो भी तो तुम वहीं खड़े हो. अंतर कहां आया. तुम्हें कोई बैशाखी नहीं लेनी…मेरी भी नहीं. स्वंय घोषणा करो अपने खड़े होने की. तब तुम मुक्त हो.
धर्म को छोड़ना धार्मिक होने की निशानी नहीं
अगर तुमने एक बैशाखी छोड़कर दूसरी ली तो तुम अपाहिज ही हो. तुम बंधन में ही हो. समाज में देख रहे हो ना. कोई मुसलमान हिंदू बन गया. तो तुम क्या समझते हो कि क्या कोई ये सोचता था कि मैं मुसलमान होकर अधार्मिक हूं. क्या वो हिंदू होकर धार्मिक हो गया. अगर हिंदू होने से धार्मिक हो गया (Who is Hindu) तो ऐसे तो तुम सभी हिंदू हो. क्या तुम धार्मिक हुए. क्या धर्म घटा…क्या तुम्हारे जीवन में नृत्य घटा. क्या तुम्हारे अंदर की वीणा बजी. क्या तुम आनंद में हो. स्वंय से पूछो…और ऐसे ही कोई व्यक्ति हिंदू होकर…हिंदूओं की कमी निकालकर…हिंदू धर्म छोड़कर मुसलमान बन जाता है. क्या वो धार्मिक हो गया. ना हिंदू छोड़कर मुसलमान बना व्यक्ति धार्मिक हुआ और ना मुसलमान से हिंदू बना व्यक्ति धार्मिक हुआ. ना हिंदू छोड़कर बौद्ध बना व्यक्ति धार्मिक हुआ. कोई भी नहीं हुआ.
धर्म की ही आवश्यकता नहीं
यहां धर्म परिवर्तन की आवश्यकता ही नहीं थी. धर्म की ही आवश्यकता नहीं थी. तुम्हारे धार्मिक होने की आवश्यकता नहीं थी. तुम धार्मिक हो जाओ तो तुम मुक्त ? तुम्हारे ही शास्त्रों में लिखा है कि सतो गुण.. रजो गुण…तमो गुण…तुम इन तीनों से मुक्त होकर ऊपर उठ जाओ…गुणातीत अवस्था को प्राप्त कर. लेकिन तुम समझे ही नहीं. क्योंकि तुम्हारी अंगुली थाम ली नासमझों ने…धार्मिक चोला पहनकर तुम्हारे धर्म गुरु बन बैठे. केवल हिंदू का ही मत समझ लेना. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन…सभी ये कर रहे हैं.
नानक धार्मिक हुए ना कि हिंदू या मुसलमान (Who is Hindu)
हिंदू में एक वयक्ति कल तक अपराध करता था. आज तिलक लगाकर चोटी धारण करके भगवा धारण करके मंदिरों में बैठा है. तुम उसके पैर छूने लग जाते हो. एक व्यक्ति कल तक समाज में पूरे अपने कृत्य असमाजिक व्यक्ति की तरह करता था. आज नंगा होकर खड़ा हो जाता है. वो तुम्हारा जैन मुनि बन जाता है. ऐसे ही मुसलमान, ऐसे सिख, ऐसे ही ईसाई, ऐसे ही बौद्ध…तुम्हें समझ ही नहीं आया कि धार्मिक होना कितना आसान है.
किसी ने कपड़े बदले वो धार्मिक…किसी ने कपड़े उतारे वो धार्मिक…अगर धार्मिेक होना इतना ही आसान होता तो खमखा बुद्ध या महाबीर जंगलों में भटकते रहे. नानक भी दो-दो कृत्य करते रहे. संसार में संसारी बनकर बहुत अच्छा जीवन जीते रहे और उसका जप भी करते रहे. दो-दो काम…लेकिन धार्मिक हुए. सिख नहीं हुए…हिंदू नहीं हुए… मुसलमान नहीं हुए. नानक, हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध के स्तर से बहुत ऊपर उठ गये.
जब तुम जागृत हो जाओगे. जब तुम्हें जीवन दिखाई देगा
वो जो चमकता है आसमान में सूरज…वैसे नानक चमके…ना हिंदू होकर (Who is Hindu) और ना मुसलमान होकर. ना सिख होकर ना ईसाई होकर. तुम गलती ही ये कर रहे हो कि जिस-जिसने तुम्हें मुक्त करने की कोशिश की तुमने उस-उस को बंधन बना लिया. तुम्हें मेरी बात मानकर नहीं छोड़ना है. तुम्हें अपने विवेक से इसे छोड़ना है और मुझे भी छोड़ना है. मैंने तुम्हें पहले भी एक बार समझाया था कि जब बुद्धत्व घटेगा…जब बोध की खिड़कियां खुलेंगी…जब तुम जागृत हो जाओगे. जब तुम्हें जीवन दिखाई देगा. जब तुम्हें परमात्मा दिखाई देगा.
उस दिन सबसे पहली घटना ही ये होगी कि तुम स्वंय को भी भूलोगे…’मैं’ को और मुझे भी भूलोगे…अब इसकी भी आवश्यकता नहीं है. क्योंकि जो ये है वही हम बन गये. हां…जो मैं हूं वही तुम बन जाओगे. तुमने सुक्त सुना होगा..सिद्धांत सुना होगा. गुरु…गुरु बनाता है. तो बुद्ध…बुद्घ ही बनाता है. बुधत्व को प्राप्त बुधत्व का ही तुम्हें वरदान देता है. प्रज्ञावान तुम्हें प्रज्ञावान ही बनाता है. परमात्मा तुम्हें परमात्मा ही बनाता है.
परमात्मा ने गुलाम बनाकर नहीं भेजा
तुमने मान लिया स्वंय को गुलाम…तुमने मान लिया स्वंय को दास…हजारों वर्ष पहले तुमने स्वंय पढ़ा या सुना होगा कि दास प्रथा थी. दास बाजारों में बेचे जाते थे. स्त्रियां बेची और खरीदी जाती थी. तुम्हें क्या लगता है कि परमात्मा ने गुलाम बनाकर भेजा. परमात्मा ने दास बनाकर भेजा. खुदा ने भेजा. नहीं खुदा तो खुदा ही बनाता है. अपने जैसा बनाता है. उससे ज्यादा आनंद उसमें कहां से आएगा कि जा तू मेरे जैसा बन जा (Who is Hindu)…लेकिन तुम नहीं समझे. तुमने स्वंय को बांधा किसी और ने नहीं…तो तुम्हें धर्मों से भी मुक्त होना है और मुझसे भी मुक्त होना है.
तभी तुम उस जीवन का असल में आनंद ले पाओगे. वरना तो तुम भेड़ हो इससे ज्यादा कुछ भी नहीं. कुछ हिंदू हैं तो कुछ मुसलमान हैं. कुछ सिख,कुछ ईसाई, कुछ बौद्ध, कुछ जैन…हिंदू ये सोचकर पूरा जीवन जप-तप करता है कि चार अपसराएं मिलेंगी. बैकुंठ मिलेगा. सोमरस पिएंगे… वहां मृत्यु नहीं होगी. मृत्यु से बड़े भयभीत हैं ये लोग…और मुसलमान ये सोचकर पांचों वक्त नमाज पढ़ता है कि वहां 72 हूरें मिलेंगी. तुम्हें समझ ही नहीं आया कि तुम चाह क्या रहे हो. तुम कर क्या रहे हो. आंखे खोलो..जागो…स्वंय को पहचानों.
आज बस इतना ही ! शेष किसी और दिन…अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…