बार-बार तुम्हारे प्रश्न…एक ही बात को तुम कई बार पूछते हो. मुक्ति कैसे संभव है. मोक्ष कैसे संभव है. मुक्ति (Moksha Prapti)… हम मरने के बाद कहां जाएंगे जिससे की हम मोक्ष को प्राप्त करेंगे. मुक्ति का मतलब यहां से मरकर कहीं भी जाना नहीं होता है. मैं यहां पर मुक्त हूं. मेरे को कोई बंधन नहीं है. ना संप्रदाय का…ना धर्म का…ना रीति रिवाज का..इसी को आत्मसात करने का नाम मुक्ति है. मोक्ष है….तुम जीवन में जाग जाओ. आंखें खोल लो…स्वंय को पहचान लो. इसी का नाम तो मोक्ष है.
पहले भी एक प्रश्न आया था किसी ने किया था. क्या स्त्रियां मुक्त हो सकतीं हैं ? क्या स्त्रियां मोक्ष जा सकतीं हैं. क्यों नहीं हो सकतीं और क्यों नहीं जा सकतीं….जाना नहीं है…क्यों बोधवान नहीं हो सकतीं हैं. जो बंधन तुम्हें है. जो तुमने अपने हाथों में बांध रखे हैं. चारो तरफ ओढ़े हुए हैं. वही बंधन तो स्त्रियों ने डाल रखे हैं. उनके पास कुछ अलग से बंधन नहीं हैं. वो जो जाग गया…उसके लिए तो कोई बंधन नहीं है. मैं कर क्या रहा हूं..मैं सिखा क्या रहा हूं. क्या मैं तुम्हें कोई हिंदू या मुस्लिम बना रहा हूं. या सिख और ईसाई बना रहा हूं. बौद्ध या जैन बना रहा हूं…नहीं…मेरा काम है तुम्हें जगाना…तुम जाग जाओ और इसी जीवन में जीते-जी जाग जाओ. जीते-जी इसी जीवन में जागोगे तभी जीवन मिलेगा. जिस दिन जागोगे उसी दिन मिलेगा. मरने के बाद मिलेगा…इन मूढ़ताओं में मत पड़ना.
सभी की मौत भी भिन्न-भिन्न (Moksha Prapti)
और ध्यान देना…जो जीवन में नहीं जागता है वो मृत्यु में नहीं जाग पाएगा. मृत्यु…तुम सोचते हो वो तो सभी को आएगी. सभी को आएगी…तो तुम्हे क्या लगता है कि सभी की मौत एक जैसी आएगी. नहीं…सभी की मौत भी भिन्न-भिन्न है. तुम्हारे जीवन..वो भी तो भिन्न हैं ना…उसी प्रकार तुम्हारे मौत भी भिन्न हैं. और जिसने जीवन में आंखें नहीं खोली…वो मृत्यु के क्षण में कैसे खोलेगा. अपने इसी जीवन में आने चैतन्य के दशर्न करो..तभी मृत्यु के क्षण में भी चैतन्य के दर्शन होंगे. और मृत्यु के समय तुम्हें चैतन्य के दर्शन ना हों तो समझना जीवन व्यर्थ हो गया.
पहाड़ों में भागने से कोई लाभ नहीं
बेकार पत्थरों की पूजा करते रहे…बेकार स्वंय को धोखा देते रहे. आज मैं जो तुम्हें कह रहा हूं ना उसे पहचानों…अगर एक बार समझ नहीं आता तो बार-बार पूछो…पहाड़ों में भागने से कोई लाभ नहीं होगा. भाग-भाग के मिला ही क्या है तुम्हें…नंगे होकर पहाड़ों में बैठ गये. देखो अपने-अपने धर्मों के नंगों को…सभी धर्मों में हो जाते हैं. क्या हिंदू… क्या जैन…अभी-अभी एक घटना घटी…मैंने स्वंय फेसबुक पर देखा कि कुछ बच्चे भगवा झंडा फहरा रहे हैं. किसी स्कूल कॉलेज में प्रदर्शन हो रहा है. वहीं एक मुस्लिम लड़की बुर्का पहनकर आती है और वो अल्लाहू-अकबर के नारे लगाने लगती है. तुम सभी ने देखा होगा. फेसबुक पर यह ट्रेंड कर रहा था. बात खत्म हुई. फेसबुक पर मुद्दे उठा दिये गये. वीडियो के नीचे कमेंट आने लगे. हिजाब का मुद्दा…मैं पढ़कर दंग रह गया.
शिक्षण संस्था में धर्म को लाया गया (Moksha Prapti)
वीडियो के नीचे कमेंट में लिखा गया था कि यदि शिक्षण संस्था में धर्म को लाया गया. और उसमें हमारे हिंदू धर्म के…हां…नागा जो संन्यासी हैं तुम्हारे…अगर वो स्कूल पहुंच गया. अपने धार्मिक वेशभूषा में…तो क्या स्कूल-कॉलेज को स्वीकार्य होगा. लिखने वाले ने कमेंट किया हिजाब के विरोध में…लेकिन इस कमेंट का जवाब किसी ने मजेदार रूप में दिया. एक ने कमेंट का जवाब दिया पहले वाले का…कि यदि उन नंगों में इतना ही बोध होता कि पढ़ना लिखना है. जीवन को सही रूप से जीना है. तो क्या वो नंगा होकर जंगल भागता. बोध की आवश्यकता तुम्हें आज है. बोध की आवश्यकता तुम्हें मरणोपरांत नहीं है.
प्रज्ञावान तो जीते-जी का नाम था
तुम्हारी गीता में कृष्ण ने जिस सिद्ध को प्रज्ञावान कहा…किसको कहा. मरने के बाद किसी मनुष्य को प्रज्ञावान…नहीं प्रज्ञावान तो जीते-जी का नाम था. तुम सभी भागे जा रहे हो. और यदि आज भी नहीं जागे…तो पता नहीं कब…कितने हजार वर्षों बाद फिर कोई मुझ जैसा आएगा. जो तुम्हें जगाने की बात करेगा. इसलिए आज ही जाग जाओ. और मुक्ति और मोक्ष (Moksha Prapti) की बात की थी ना तुमने…मुक्ति और मोक्ष…तुम्हारे जागने के बाद जो स्थिति तुम्हारी होगी. उस स्थिति का नाम है. और एक प्रश्न था ना कि क्या स्त्रियां मोक्ष जा सकतीं हैं. चेतना के तल पर..चैतन्य के तल पर..आत्मा के तल पर…तुम्हारे भीतर जो है चेतन..उसके तल पर…तो ना कोई स्त्री है और ना कोई पुरुष है.
एक दिन अपनी मूढ़ता पर खुद ही हंसोगे
अगर तुम स्त्री और पुरुष को धर्म के क्षेत्र में अलग-अलग देख रहे हो. तब तो तुम्हारा ईश्वर..हिंदू का ईश्वर हुआ और अल्लाह मुसलमान हुआ. लेकिन अगर तुम राम को हिंदू और अल्लाह को मुसलमान कहोगे. तो एक दिन अपनी मूढ़ता पर खुद ही हंसोगे. जो कण-कण में रचा-बसा है. इसका मतलब उसने अल्लाह के लिए अलग स्थान छोड़ दिया. और जो जर्रे-जर्रे को महका रहा है, उसने राम के लिए अलग स्थान छोड़ दिया. तुम्हारा चैतन्य ना तो हिंदू है और ना ही मुसलमान…उसी तरह तुम भी ना तो हिंदू हो और ना मुसलमान…ना सिख, ना ईसाई, ना बौद्ध, ना जैन…बस दो ही स्थितियां हैं तुम्हारी…आज तुम सोये-सोये हो. कल तुम आंखें खोलोगे और जाग जाओगे.
आंखें खोलो तुम अपने
धार्मिक और अधार्मिक में अंतर क्या है. अच्छा इसमें करना क्या पड़ता है. केवल इतना ही अंतर है कि एक की आंखें बंद हैं जबकि दूसरी की खुली है. इसमें आंख खोलने भर की देरी है. और कुछ भी तो नहीं… आंख खोल ली तो तुम धार्मिक…आंख खोल ली तो तुम मुक्त…आंख खोल ली तो तुम बुधत्व को उपलब्ध…आंख खोल ली तो तुम प्रज्ञावान…और आंख बंद तो तुम अधार्मिक…तुम जाग गये तो तुम बुद्घ..और सोये रहे तो तुम बुद्धू…इतना ही तो अंतर है. और बौद्ध…मैं बौद्ध धर्म का प्रचार नहीं कर रहा हूं. बुद्ध का मतलब…बुधत्व का मतलब…पूरा का पूरा वहीं जिसे तुम्हारे ही शास्त्रों में प्राज्ञावान कहा है. ज्ञानवान कहा है. आत्मदर्शी कहा है. अहं ब्रह्मास्मि कहा है.
आज इतना ही…शेष किसी और दिन…चारों ओर फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…