आजा लोट के आजा मेरे मीत तुझे मेरे गीत बुलाते है।”लौटना कभी आसान नहीं होता।”एक मशहूर कहानी आपने पहले भी सुनी होगी।एक आदमी सम्राट के पास गया और बोला कि वह बहुत गरीब है, उसके पास कुछ भी नहीं है, उसे मदद चाहिए। सम्राट दयालु था उसने पूछा कि “क्या मदद चाहिए?” आदमी ने कहा “थोड़ा-सा भूखंड” जिसमे में खेती कर सकू और अपना जीवन यापन कर सकू। सम्राट ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना अगले दिन वो आ गया सम्राट ने कहा जितनी ज़मीन पर तुम शाम तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा हो जायेगा, परंतु ध्यान रहे, जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा” आदमी खुश हो गया कुछ ही क्षण बचे थे सूर्योदय होने वाला था जैसे ही सूर्योदय हुआ उसी क्षण वो आदमी दौड़ने लगा आदमी दौड़ता रहा दौड़ता रहा सूरज सिर पर चढ़ आया था पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका। वो हांफ रहा था पर रुका नहीं बस एक ही बात सोच रहा था कि थोड़ा और। एक बार की मेहनत है फिर पूरी ज़िंदगी आराम! ध्यान से देखना यही सब हम भी करते है। शाम होने लगी थी आदमी को याद आया, लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था अब उसे लौटना था पर कैसे लौटता? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था आदमी ने पूरा दम लगाया। हमें भी रुपये की दौड़ में 60 – 70 वर्ष निकल जाते है उस रूपए का उपयोग करने का घूमने फिरने का समय ही नहीं मिल पाता। वो लौट सकता था पर समय तेजी से बीत रहा था थोड़ी ताकत और लगानी होगी वो पूरी गति से दौड़ने लगा। पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था वो थक कर गिर गया उसके प्राण वहीं निकल गए! हम भी बस यही सोचते रह जाते है की बस एक दो वर्ष और कमा ले फिर आराम करेंगे लेकिन वो क्षण कभी भी नहीं आता।
हमारा जीवन भी कमाते कमाते ही समाप्त हो जाता है और पीछे से वो ही रूपए पैसे हमारे बच्चों के लिए झगडे का कारण बनता है। सम्राट यह सब देख रहा था अपने मंत्रियो के साथ वो वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था। सम्राट ने उसे गौर से देखा सम्राट ने सिर्फ़ इतना कहा “इसे सिर्फ दो गज़ जमीन की दरकार थी नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था! ” आदमी को लौटना था पर लौट नहीं पाया वो लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता। हमें भी अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता हमारी ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, पर चाहतें अनंत। अपनी चाहतों के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता हम सब दौड़ रहे हैं परंतु क्यों? नहीं पता। और लौटता भी कौन है? और इस दौड़ का केवल रूपए की दौड़ से ही मत मान कर संतोष मत कर लेना। कि तुम तो बच गए क्योकि तुम रुपये की दौड़ में शामिल नहीं हो। लेकिन तुम रूपये की दौड़ में न सही अन्य दौड़ में तो शामिल हो। तुम्हारी जो स्वर्ग की दौड़ है, बैकुंठ की दौड़ है, सिद्धाश्रम की दौड़ है, गोलोक की दौड़ है वो सारी की सारी ही चाह की ही दौड़ है। उसमे कुछ भी अंतर नहीं है।
मै तुम्हे हमेशा यही समझाता हू कि तुम 2 क्षण शांति से बैठो ध्यान करो तो तुम पाओगे की तुम्हे कही भी पहुंचना नहीं है। मेरे ध्यान का मतलब केवल खाली होकर बैठना है विश्राम करना मात्र है। ध्यान का मतलब जो आज तक तुमने सुन रखा है की तुम्हे आंखे बंद कर भृकुटि के मध्यें ध्यान केंद्रित करना है यह भी तुम्हारे पंडित पुरोहित की ही चाल है। पहले जप, तप, व्रत से स्वर्ग, बैकुंठ, सिद्धाश्रम, गोलोक आदि के स्वपन दिखाए अब तुम वहा न फसे तो ध्यान मे ही फसाने की ठान ली। तुम देखो क्या तुमने अपनी दौड़ समाप्त कर दी है या अभी दौड़े चले जा रहे हो। ध्यान रखना ये दौड़ कभी भी समाप्त नहीं होती है। तुम आज भी दौड़ रहे हो बिना ये समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है। अभिमन्यु भी लौटना नहीं जानता था हम सब अभिमन्यु ही हैं हम भी लौटना नहीं जानते। सच ये है कि “जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता।” काश इस कहानी का वो पात्र समय से लौट पाता! काश हम सब लौट पाते!
इसलिए मैं कहता हूँ अभी भी समय है जागो! आंख खोलो देखो तुम कहा भागे जा रहे हो! देखो धर्म के नाम पर तुम क्या क्या पाखण्ड कर रहे हो। ध्यान करो! जागो! जागते रहो!
परमात्मा