किसी ने पूछा परमात्मा संसार में दुख क्यों है ? कोई हिंदू है, कोई मुसलमान, कोई सिख, कोई ईसाई लेकिन इन पदवियों से बढ़कर भी वह दुखी है. यदि वह दुखी नहीं है तो वो क्यों जा रहा है सुख मांगने को…क्यों कृत्य कर रहा है स्वर्ग प्राप्ति के…यानी दुखी है. तो कहता है परमात्मा ये दुख दूर कैसे होगा (दुख दूर करने उपाय)? दुख के कारण क्या हैं. यदि दुख का भान किसी व्यक्ति को हो जाए तो वह उसे दूर करने का प्रयास करने लगेगा. यदि तुम्हें पता चल जाए कि जिस कमरे में तुम रहते हो उस कमरे के सोफे के नीचे सांप छिपा है तो क्या उस कमरे में तुम एक क्षण भी बैठोगे ? किसी के निर्देश का पालन करने के लिए रुकोगे कि कोई बोले तो मैं बाहर निकलूं. नहीं… तुम फौरन उठकर भाग जाओगे.
दुख तुम्हें पिछले जन्मों के नहीं मिले (दुख दूर करने उपाय)
लोगों को पता ही तो नहीं चलता कि वह दुखी है. इसलिए तो मैं तुम्हें कहता हूं कि मैं तुम्हें कोई कथा कहानी नहीं सुना रहा हूं. जो तुम्हारे मूढ़ धर्मगुरू तुम्हें सिखाते हैं. सुनाते हैं. समझाते हैं. मैं तो तुम्हें केवल जगा रहा हूं. आंखें खोलो और स्वंय को देख लो. जैसे ही स्वंय को देखोगे तो उस दुख से अपना पीछा छुड़ा लोगे. और दुख..दुख तुम्हें पिछले जन्मों के नहीं मिले हुए हैं, कि तुम सोचो कि ये दुख तो प्राप्त किये हुए हैं(दुख दूर करने के उपाय). नहीं मैं दावे के साथ कहता हूं कि तुमने पिछले जन्मों में कुछ पाप किये ही नहीं…वो तो तुम्हारे मूढ़ महात्माओं को स्वंय ही प्रसन्न रहना पसंद नहीं आया. तो वो तुम्हें कहां से प्रसन्न रहना सिखाएंगे. वो तुम्हारे जीवन को आनंदित कैसे करेंगे.
मैं तुम्हारी निद्रा तोड़ना चाहता हूं
और सुखी…कोई महात्मा तुम्हें सुखी करेगा…कोई मंत्र तुम्हें सुखी करेगा…कोई साधना..सिद्धि…कोई देवी-देवता…ईश्वर…कोई तुम्हें सुखी करेगा…इसी को तो कहते हैं सोना..निद्रा में होना कि दूसरा तुम्हें सुखी करेगा. भविष्य में तुम सुखी रहोगे. स्वर्ग में जाकर..जन्नत में पहुंचकर…ये क्या है…ये स्वप्न ही तो है. आंखें खोले-खोले स्वप्न में हो तुम…और मैं तुम्हारी निद्रा तोड़ना चाहता हूं. मेरे वचन इसलिए तुम्हें तीर की भांति चुभते हैं. मैं छोड़ता ही ऐसे तीर निशाने पर हूं कि तुम जाग जाओ. तुम आंखें खोल लो. फिर तुम्हें किसी की अवश्यकता नहीं पड़ेगी. मेरी भी नहीं..क्योंकि जो किसी को नींद से जगाता है. मनुष्य तो उसी को पहले घूरकर देखता है. वह सोचता है कि कितने अच्छे रंगीन सपनों में खोए थे हम…
कोई किसी को सुखी नहीं कर सकता
और सुखी…सुखी हम स्वर्ग में नहीं होते…सुखी भविष्य में नहीं होते…और कोई किसी को सुखी नहीं कर सकता है. अपने ही घर में झांक कर देखो…क्या तुम्हारे बच्चे तुमसे प्रसन्न हैं. क्या तुम्हारे माता-पिता तुमसे प्रसन्न हैं. लेकिन तुम क्या कर रहे हो. तुम दूसरे को प्रसन्न करने के लिए दिन-रात लगे हुए हो. धन दौलत इकठ्ठी कर रहे हो. और स्वंय ऐसे अंतहीन दौड़ में दौड़े जा रहे हो जो दौड़ कब्र पर जाकर रुकती है.
पापोहं पापकर्माहं…का अर्थ जान लो (दुख दूर करने उपाय)
अब ध्यान से देखो. तुम जो घर में सबसे बड़े हो. मुखिया घर के…तुम दौड़ में दौड़ रहे हो. यानी तुम सुखी नहीं हो. और जब घर का मुखिया ही सुखी नहीं तो तुम सोच रहे हो कि तुम्हारे घर के बाकी सदस्य सुखी हो पाएंगे. असंभव..गोमुख से गंगा निकली…लाल रंग की धारा निकली. तो तुम क्या सोचते हो नीचे बहने वाली गंगा को तुम सफेद पाओगे. या सफेद कर पाओगे. अगर रंगहीन ही निकलती. तो ही रंगहीन चलती. मुखिया सुखी होगा तो ही परिवार सुखी होगा. सुख आज है अभी है…भविष्य में नहीं है. और तुम्हारे मन में भ्रम डाले गये हैं ना कि तुम दुखी हो. पापात्मा हो..श्लोक रटते हो ना तुम पापोहं पापकर्माहं…वो तुम्हें जान बूझकर रटाया जा रहा है. मूर्ख बनाने के लिए… कोई पापी नहीं हो तुम…किसी पाप कर्म में लिप्त नहीं हो तुम…वो तो तुमने स्वंय कर्ता होने का अभिमान पाल रखा है. मैं कर्ता हूं…बस जहां ‘मैं’ आया…जहां अहंकार आया. जहां कर्ता का भाव आया. वहां जो तुमने किया वो दुख ही दुख है. अगर अहंकार गया. कर्ता का भाव गया. तो जो बचा वो सुख ही सुख है.
अपना सारा का सारा उत्तरदायित्व ले लो
मैं तुम्हें ठीक-ठीक कह रहा हूं. इसमें जरा सी भी शंका नहीं है. यदि एक बार तुम जाग गये. एक बार तुम्हें अपने दुख का भान हो गया. एक बार तुम्हें ये पता चल गया कि तुम्हारा दुख तुम्हारे ही कारण है. तो तुम तत्क्षण उस दुख से अपना पल्ला झाड़ लोगे और आनंद से रहने लग जाओगे क्योंकि आंखें खोलनी पड़ेगी. नींद से सोये हो. छाती पर सांप बैठा है. तुम्हें पता ही नहीं…जैसे ही आंख खुलेगी. तुम बिना कुछ सोचे समझे सांप को पकड़कर दूर फेंक दोगे. मर गये तो मर गये…बच गये तो बच गये. लेकिन यहां ये फन फैलाये बैठा रहेगा छाती पर…तो ना सो पाएंगे और ना जाग पाएंगे. एक-एक क्षण तिल-तिल मौत सामने दिखाई देगी. और ये होगा कैसे? ये होगा और इसका केवल एक ही मंत्र है कि तुम अपना सारा का सारा उत्तरदायित्व ले लो. अपने ही कंधों पर ले लो. आज अभी…भूतकाल में नहीं…कि तुमने पाप किये…नहीं किये…भविष्य में नहीं कि तुम यहां से मरोगे तो स्वर्ग में जाओगे. बैकुंठ जाओगे. वहां तुम्हें कोई सुखी करेगा. नहीं ये केवल कल्पनाएं हैं. नींद में लिये गये स्वप्न हैं वो…अपना सारा जिम्मा अपने कंधों पर ले लो. और जैसे हो अपने आप को स्वीकार लो.
ऐसे तुम आज ही सुखी हो जाओगे(दुख दूर करने उपाय)
दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना..ना भूतकाल में किये गये कर्मों पर…ना भविष्य में देवी देवताओं पर कि वो कृपा करेंगे. अपना सारा उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लो. तो तुम आज ही सुखी हो जाओगे. अभी सुखी हो जाओगे. तत्क्षण सुखी हो जाओगे. और जिस दिन मुखिया सुखी हो जाएगा. परिवार का मुखिया. उस दिन परिवार भी सुखी हो जाएगा. समाज भी सुखी हो जाएगा. देश भी सुखी हो जाएगा. संसार भी सुखी हो जाएगा.
आज इतना ही…शेष किसी और दिन…चारों ओर फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…