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वास्तविकता में धार्मिक होने का मार्ग नास्तिकता से ही प्रारम्भ होता है

वास्तविकता में धार्मिक होने का मार्ग नास्तिकता से ही प्रारम्भ होता है।

आस्तिक कौन है? अगर तुम मंदिर मस्जिद जाने वाले को ही आस्तिक समझते हो तो ये तुम्हारी भूल है। अगर सच्चे अर्थो में मंदिर मस्जिद जाने वाला ही आस्तिक है तो सारा संसार ही आस्तिक है। फिर तो तुम्हे कुछ करना ही नहीं चाहिए, कोई जप तप अनुष्ठान उपाए यम नियम प्राणायाम प्रत्याहार कुछ भी तो नहीं। अगर मंदिर मस्जिद जाने वाला ही आस्तिक है तो फिर गीता कुरान हमारे काम की नहीं है। फिर तो इन्हे  लाल हरे कपडे में बांध कर रख देनी चाहिए। फिर तो आज समाज में जो हो रहा है वो सभी ठीक ही हो रहा है। तुम उन्हें गलत कह ही नहीं सकते। क्योकि सभी तो धार्मिक है सभी तो आस्तिक है।

बच्चे घर में विद्रोह कर रहे है, छात्र स्कूल में विद्रोह कर रहे है, पति पत्नी के बीच में तनाव बढ़ रहा है, समाज में रैप मर्डर जैसी घृणित कार्य दिख रहे है, लोग मानसिक बीमारी से ग्रस्त है, हर 8  सेकंड में कोई न कोई आत्महत्या कर रहा है। फिर भी हम सोये सोये ये ही मानते रहते है की हम सब आस्तिक है, हम सब धार्मिक है। कैसी विडम्बना है कोई भी आँख उठा कर नहीं देखता किसी को फुर्सत ही नहीं है।

हर कोई अपने अपने घर की ही बात सोचता रहता है।

नहीं मंदिर मस्जिद जाने वाला धार्मिक नहीं होता, और मंदिर मस्जिद जाने वाला तो धार्मिक हो भी नहीं सकता क्योकि उसके धार्मिक होने के रास्ते में सबसे बड़ा बंध ही ये है की वो ये समझता है की वो सब कुछ जानता है, वो सोया सोया ये मानता है की वो आस्तिक है, और जब तक कोई भी मनुष्य ये ना मान ले कि वो धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता तब तक उसकी धर्म की खोज आरम्भ ही नहीं होती है।

ये कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि धार्मिक होने का मार्ग आस्तिकता से नहीं नास्तिकता से ही होकर जाता है।

जो कोई भी धर्म की खोज करना चाहता है उसे नास्तिक होने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। धर्म खोजना कोई कमजोर व्यक्तियों का काम नहीं है धर्म तो कोई हिम्मतवर ही खोज सकता है, कितने हिम्मतवर रहे होंगे बुद्ध, महावीर, मोहम्मद, जीजस, नानक, कबीर जिन्होंने धर्म की खोज की।

अगर वो भी सभी तुम्हारी तरह ही मंदिर मस्जिद से ही संतुष्ट हो गए होते तो शायद आज उनका कोई भी नाम लेवा नहीं होता। धर्म कभी भी इतना सस्ता नहीं हो सकता। अगर धर्म इतना ही सस्ता होता तो क्या आवश्यकता थी कि कृष्ण इतनी बड़ी गीता बोलते, वो केवल एक ही लाइन में सभी कुछ समझा देते कि ही अर्जुन तो केवल मंदिर मस्जिद जाया कर बाकी सभी ठीक है। लेकिन आज कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि धर्म मंदिर मस्जिद से हटकर कुछ और है।

क्यों हो गया है आज हमारा समाज ऐसा?

क्या हुआ कि आज कोई भी साहस नहीं करता। हर कोई एक ही ढर्रे पर खड़ा दिखाई देता है। दोष आम आदमी का नहीं सारा का सारा दोष धर्म गुरुओ का है, फिर कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है कि वो कौन से धर्म से है चाहे वो हिन्दू हो मुस्लिम हो सिख हो ईसाई हो या संसार में अन्य कोई और।

आज सभी धर्म गुरुओ का काम केवल इतना ही रह गया है कि किस तरह उनके धर्म स्थल चलते रहे और धन उपार्जन होता रहे। आज सभी धर्म गुरुओ का काम केवल धर्म के नाम पर अंध विश्वास फैलाना ही रह गया है क्यों समाज नीचे की और गिर रहा है? क्यों धर्म नीचे की और गिर रहा है? क्यों चारो तरफ विद्रोह ही विद्रोह दीखता है? क्यों रेप की घटनाये बढ़ रही है? कोई क्यों नहीं सोचता आज इस बारे में?

क्योकि हर कोई केवल अपने ही स्वार्थ में लगा है हर कोई केवल अपनी ही गठरी बांधना चाहता है। मैं आज फिर से सबको चैता रहा हूँ कि अगर अब भी नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी।

और एक बात और कि अगर तुम सच में ही धार्मिक होना चाहते हो तो तुम्हे पुराने ढोए हुए संस्कारो की गढ़री उतार फेकनी होगी। तोड़ देने होंगे सारे आडम्बर जो तुमने धर्म के नाम पर बनाये हुए है, बिना पुराना छोड़े कोई कभी भी नए को नहीं खोज सकता है।

ये कहना पूर्णतया ही सत्य होगा की धर्म का रास्ता कभी भी श्रद्धा से होकर, मंदिर मस्जिद से होकर, आस्तिकता से होकर नहीं जाता। अगर तुम वाकई में धार्मिक होना चाहते हो तो हिम्मत करो और नास्तिक होकर उसको खोजो की क्या है धर्म?, कहाँ है परमात्मा?, क्या है सत्य? कैसे पाया उसको बुद्ध ने, महावीर ने, नानक ने, मोहम्मद ने, जीजस ने? तभी सही अर्थो में तुम धर्म की खोज कर सकते हो।

और मुझे पता है कि इतनी हिम्मत तुम्हारा कोई पंडित पुरोहित कभी भी नहीं कर सकता ये तो कोई पागल का ही काम हो सकता है। पंडित पुरोहित मुल्ला मौलवी या अन्य धर्म गुरु उनका काम बिलकुल राजनेता के ही जैसा है। वो उनसे भिन्न नहीं है।

मैं आवाहन करता हूँ उन हिम्मतवर लोगो का जो धर्म को खोजना चाहते है। और जो नास्तिक होने का जोखिम भी लेने को तैयार है कि हम अपना धर्म खोज कर रहेंगे।

मैं उन्ही लोगो को खोज रहा हूँ जो धर्म के लिए कुछ भी दाव पर लगाने को तैयार है।

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