बागेश्वर धाम वाले के (Bageshwar Dham Baba)यहां सारे साधु संत जा रहे हैं. चाहे कोईं राजेंद्र दास हो या रमादास…किसी ने पूछा क्यों जा रहे हैं…मैंने कहा कि वे धन्यवाद देने को जा रहे हैं. ऐसा इसलिए कि उनकी दुकानें पिछले कई वर्षों से बंद पड़ी थी जो अब चालू हो गयी. उनकी दुकानें चल पड़ी. अरे लगता है कि वह तुम्हारे दुख दूर कर सकता है तो अच्छी बात है. मैं कहता हूं कि दिल्ली में एक भव्य भवन बनाओ.
अरे देश के 135 करोड़ में से दुखी कितने होंगे. 100 करोड़…एक वर्ष में जब कोरोना का टीका 200 करोड़ के पार जा सकता है तो तुम एक साल में 100 करोड़ आदमी को सुखी नहीं कर सकते…उन्हें सुखी करके कहो कि जाओ…अब दुकानें बंद…क्योंकि मनुष्य तो सुखी हो गया…धर्म की स्थापना हो गयी. तुम हंसकर कहोगे कि ऐसे थोड़े ना धर्म की प्राप्ति होती है. हां…तुमने ठीक कहा…धर्म की प्राप्ति के लिए स्वंय के ‘मैं’ को मारना होता है. स्वंय के अहंकार को मारना पड़ता है.
मनुष्य धर्म के ऊपर होने चाहिए (Bageshwar Dham Baba)
जब तुम्हारा अहंकार मरता है तो वहां धर्म का एक फूल खिलता है. वहीं फूल तो नानक, मोहम्मद, बुद्ध, कृष्ण, जीसस, कबीर के अंदर खिला लेकिन ‘मैं’ के मरने के बाद…फूलों के लाशों से खुशबू नहीं बल्कि सड़ान बिखरती है. मनुष्य धर्म के ऊपर होने चाहिए. फूलों की तरह…मनुष्य को तुम नीचे दबा रहे हो…कब्रों में..नींव में…और चाह रहे हो कि धर्म की स्थापना हो जाए…ये असंभव है. जीवन की वैल्यू है. तुम्हारे मृत पवित्र स्थलों की वैल्यू नहीं है. मैं यहां हर धर्म के लोगों से कह रहा हूं. चाहे वो हिंदू हो, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन हो…धर्म गुरुओं और धर्म शास्त्रों की कोई अवश्यकता नहीं है.
मैं हिंदू की बात कर रहा हूं
और जिसे तुम ब्राह्मणवाद कहते हो…मैं हिंदू की बात कर रहा हूं. ब्राह्मणवाद को मैं अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि मैं इसी परिवार से संबंध रखता हूं. मेरे लेक्चर सुनने के बाद मुझे जितने फोन आते हैं. जान से मारने की धमकी दी जाती है वो सारे ब्राह्मण लोगों के द्वारा ही दी जाती है. वही ब्राह्मण जो सुबह आरती करके आ रहा है वो बाद में मुझे गाली देता है. ये तुम्हारा ब्राह्मणवाद है.
क्या तुम्हारा समाज (Bageshwar Dham Baba)
अभी तुम्ने पिछले दिनों ब्राह्मणों को छोड़ा…दुष्कर्मियों को…क्या तुम्हारा समाज है. तुम समझ ही नहीं पा रहे हो कि धर्म क्या होता है. यदि तुमने मान लिया कि ब्राह्मणवाद ही धार्मिक होता है तो इसका मतलब है कि तुमसे क्लियर तौर पर मान लिया कि मुसलमान तो धार्मिक हो ही नहीं सकता है. क्योंकि वह ब्राह्मण ही नहीं है. ना सिख में, ना ईसाई में, ना बौद्ध में, ना जैन में…तुमने धर्म को केवल ब्राह्मण से और घंटी घुमाने से मान लिया. फिर मैं वहीं कहूंगा कि मनुष्य की लाशों पर धर्म की स्थापना नहीं हो सकती और फूलों को कुचलकर खुशबू नहीं फैलाया जा सकता है.
मनुष्य को तो तुमने मार दिया
फूलों को खिलने दो अपने-अपने पेड़ पर…चाहे वो कोई भी फूल हो…वह अपने आप खुशबू फैलाएगा…उसी प्रकार मनुष्य जैसा पैदा हुआ है उसे वैसा ही रहने दो. वो अपने आप उसके ऊपर धर्म का फूल उगेगा. उसके ऊपर…मनुष्य को तो तुमने मार दिया…बंदी बना दिया…उसके चारों ओर बेड़ियां डाल दी.
आज केवल इतना ही…शेष किसी और दिन…अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…