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धर्म एक धंधा था: पूरा देश अँधा था

धर्म क्या है?

धर्म एक तेज धार तलवार है, जिस पर लाखों कट चुके हैं और लाखों कटने को तैयार हैं। यह धर्म नहीं है, ना हिंदू होना, ना मुस्लिम होना, ना सिख होना, ना ईसाई होना। धर्म तो एक आग है, जो तुम्हारे भीतर जलती है। जल गई तो तुम धार्मिक, तुम प्रबुद्ध, तुम बुद्धत्व को उपलब्ध, तुम ज्ञानवान, तुम जागृत, तुम शांत, तुम अनंत स्वरूप, सच्चिदानंद स्वरूप। और नहीं जली तो तुम हिंदू, तुम मुसलमान, तुम सिख, तुम ईसाई, बौद्ध और जैन, और कुछ भी नहीं।

धर्म एक धंधा था

धर्म एक धंधा था, और देश सारा अंधा था। कुछ हिंदुओं की भीड़ अंधी है, कुछ मुसलमानों की, कुछ सिखों की, कुछ ईसाइयों की, बौद्ध की, जैन की। 365 धर्म हैं दुनिया में। तुम ही मत बोलो कि गर्व से कहो कि हम हिंदू हैं या इस्लाम हमारा सर्वश्रेष्ठ धर्म है। हर धर्म वाला यह भ्रम पाले रहता है कि उसने पिछले जन्म में बहुत अच्छे कर्म किए थे, कि उसके भगवान ने इस विशेष धर्म में पैदा किया। क्योंकि हर धर्म का भगवान अलग, उसके भगवान ने उसे उस विशेष कुल में पैदा किया, इसलिए वह गर्व से अपने इसी भ्रम को पाले पाले पूरा जीवन जी लेता है।

भविष्य की चिंता

भविष्य में कोई भी नहीं सोच पा रहा है कि हम भविष्य को कैसे जिएंगे। क्या इन मंदिरों, मस्जिदों, गिरजों, गुरुद्वारों के दम पर हम भविष्य की एक सुंदर नींव रख पाएंगे? क्या तुम्हें नहीं लगता कि आने वाले 25-30 वर्षों में, जब हमारे बच्चे छोटे पढ़ने-लिखने जाएंगे, 10 वर्ष, 15 वर्ष, हिंदू के, मुसलमान के, सिख के, ईसाई के, बौद्ध के, जैन के क्या उनके मन में यह डर होगा कि शायद हमारे बच्चे को कोई विरोधी धर्म वाला मार दे?

धर्म का वास्तविक अर्थ

धर्म तो एक आग थी, जो भीतर जलनी थी। अगर हम सब लोग आज भी नहीं जागे, इन आडंबरों से ऊपर नहीं उठे, तो एक दिन स्थिति बहुत भयावह होगी। अब यह तुम्हें निर्णय करना है कि उस स्थिति को तुमने रोकना है या उसी को चलने देना है।

धर्म का वास्तविक रूप

जब हम छोटे थे, 4 या 5 स्टैंडर्ड में पढ़ते थे, तो टीचर अक्सर बात करते थे धर्म की। वे कहते थे कि वे राम को तो मानते हैं, लेकिन राम धनुषधारी राम की बात नहीं कर रहे थे। वो राम जीवन रूप में राम है, तुम्हारे भीतर। लेकिन वह जीवन रूप वाला राम कब विलीन हो गया, कब उसकी जगह धनुर्धारी राम ने ले ली, तुम्हें पता ही नहीं चला। और आज तो पूरा जीवन, पूरा संसार, पूरा देश एक ही काम पर लगा हुआ है – कोई राम को ऊपर उठाना चाह रहा है, कोई अल्लाह को, कोई खुदा को, कोई जीसस को। हम क्या कर रहे हैं, तुम्हें भी नहीं पता चला कि यह स्थिति जो राम की थी, वह कब धनुषधारी राम में कन्वर्ट हो गई।

देश की वास्तविक स्थिति

पंक्ति तो सही है – “धर्म एक धंधा था, और देश सारा अंधा था।” जब आंख खुली, तो पता चला कि आधा देश भूखा और आधा देश नंगा था। भूखा है, तभी तो आज 80 करोड़ लोगों को राशन की आवश्यकता पड़ रही है। हम उनके सामने ऐसा कोई ऑप्शन नहीं रख पाए कि वो इज्जत से कमाकर स्वाभिमान की रोटी खाएं। हम उनको यह रास्ते नहीं दे पाए, जबकि हमें उनको यह रास्ते देने थे।

राजनीतिक स्वार्थ

लेकिन वोट बैंक है – कोई बिजली फ्री दे रहा है, कोई लोन माफ कर रहा है, कोई राशन फ्री दे रहा है, कोई लैपटॉप दे रहा है, कोई साइकिल दे रहा है। पूरे देश की आत्मा को, भारत की आत्मा को भिखारी बनाया जा रहा है। लेकिन किसको होश है, किसको परवाह है? सब अपने-अपने गांठ को मजबूत करने में लगे हैं, कि मेरा घर मजबूत हो, मेरी गठरी पक्की हो, मेरी गठरी बड़ी हो जाए। इसके अलावा कोई सोचना ही नहीं चाह रहा है।

जागो और जागते रहो

इस सोच नहीं रहा है कि इसी देश में, अगर एक पेड़ हमने नीम का बोया है, जब वह पेड़ बड़ा होगा, तो नीम के ही उसमें फल लगेंगे, आम के फल नहीं लगेंगे। आज इतना ही शेष, किसी अन्य दिन अंत में, चारों तरफ बिखरे-फैले परमात्मा को मेरा नमन। तुम सभी जागो, जागते रहो।

By Parmatmana

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