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Meaning of Rupantaran :रुपांतरण का सही अर्थ समझो, ‘मैं’ को मारो पहले

एक ने पूछा कहता है परमात्मा प्रज्ञा जागृत होने पर जो रुपांतरण (Meaning of Rupantaran)होता है. बुधत्व के घटने पर जो मनुष्य में रुपांतरण होता है. वो क्या होता है. ये बचकानी बातें हैं और बच्चों वाले सवाल हैं. कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है. तुम्हारे शरीर में कोई परिवर्तन नहीं आता है और ना ही तुम्हें कोई भूत या भविष्य दिखता है. इस घटना के घटने की कंडिशन ही यही होती है कि वहां तुम नहीं होते हो. और जहां तुम यानी तुम्हारी ‘मैं’ नहीं होती, वहां तुम्हारे दुख, तुम्हारी पीड़ा, तुम्हारे संताप…क्रोध…मोह…चाह…कुछ भी तो नहीं बच सकता. क्योंकि जिससे तुम्हें दुख होता है वो बचा ही नहीं…घटना घटने का मूल कारण यही था कि तुम वहां नहीं बचे. तो ये भी नहीं बचा.

रुपांतरण (Meaning of Rupantaran)के बाद क्या बचता है ?

रुपांतरण के बाद जो बचता है वो है प्रेम…करुणा…दया…सत्य…परमात्मा…बोध…तुम्हारा ठीक हो जाना कहना सही नहीं है. वहां केवल वो बचता है. मैं दावे के साथ कह सकता हूं ये कि जिस दिन ये घटना घटेगी तुम्हारे साथ…उस दिन तुम देखोगे कि सारी प्रकृति आनंद में मग्न (Meaning of Rupantaran)है. प्रकृति उत्सव मना रही है. नृत्य कर रही है. तुम्हें दिखेगा कि पेड़, जानवर सभी परमात्मा के नृत्य के साथ नृत्य कर रहे हैं. उस दिन तुम स्वंय पर हंसोगे या तुम खुद को कोसते हुए नजर आओगे. तुम सोचने पर मजबूर हो जाओगे कि तुमने इतने साल व्यर्थ गंवा दिये. तुम खुद की उदासी का कारण खुद हो…ये तुम्हें पता चलेगा.

.वो कारण ‘मैं’ था

तुम समझ जाओगे कि जो कमी थी मेरे अंदर जिस कारण मैं मंदिरों और मस्जिदों में भागा जा रहा था. वो कारण ‘मैं’ था और मेरा अभिमान था. जब तक तुम्हारी मैं समाप्त नहीं होगी..तुम्हारा जीवन रुपांतरित नहीं होगा. कोई घटना नहीं घटेगी..हां…तुम कल तक पैंट और टाई पहनकर घूमते थे और अब किसी कृष्ण भक्ति संस्था में गये. उन्होंने तुम्हें मूढ़ बना दिया. धोती पहना दी और कंठी पहना दी. हाथ में माला दे दी और तिलक लगा दिया. तुम इसके बाद अपने आप को आइने में देखोगे तो पूरे बदले हुए नजर आओगे. दूसरे को दिखाने के लिए तुम पूरी तरह से बदल गये लेकिन क्या तुम्हारा चित अंदर से बदला…

ऐसे समझो मूढों को

ऐसे ही तुम्हारे महात्मा हैं. कल तक कोई व्यक्ति व्यापार करता था. नौकरी करता था. किसी ने सिखाया कथा करनी सीख लो. वो कथा करने चला गया. कंठी लगा ली तिलक लगाकर..गद्दी लगाकर बैठ गया…क्या लगता है तुम्हें कुछ बदल गया. क्या वह वही व्यक्ति नहीं है जो पहले व्यापार करता था और लोगों का धन हरण करता था. आज दान के नाम पर पैसे वसूल रहा है.

‘मैं’ का समाप्त होना जरूरी (Meaning of Rupantaran)

घटना तब घटती है जब तुम्हारे अंदर का ‘मैं’ मरता है. जिसकी मैं समाप्त हो गयी. उसका मैं हिंदू हूं…बचा क्या. दीन ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है…इस्लाम…क्या ये कथन बची…मैं सिख… मैं ईसाई…मैं बौद्ध..मैं जैन…बचेगा कुछ…क्योंकि ‘मैं’ ही तो कारण था. और ‘मैं’ के कारण ही तो घटना घटी और ‘मैं’ के गिरते ही तो घटना घटी. जब ‘मैं’ ही नहीं बची तो क्या बचा. जब तक ‘मैं’ समाप्त नहीं हो जाता तब तक जीवन रुपांतरित हो ही नहीं सकता है.

कोई सुखी हो ही नहीं सकता. यदि तुम्हें लगता है कि धनवान सुखी हैं. तो धनवानों से पूछो कि क्या तुम्हारा धन तुम्हें सुखी कर पाया…एक भी नहीं मिलेंगे. धनवानों की तरह दुखी पूरी श्रृष्टी में कोई हो ही नहीं सकता है. क्योंकि धनी होने का गुण ही ये है कि उसके मन में असंतोष, द्वेष, घृणा है…यही तो लक्षण है. इसी कारण तो धन जमा हुआ.

धन मुख्य नहीं है

तुमने धन को मुख्य मानकर सारे कार्य की तुलना कर ली. और उसी कारण तुम भी उलझ गये. दरिद्रा शब्द का धन से कोई लेना देना नहीं है. दरिद्रता का गरीबी से कोई लेना देना नहीं. एक व्यक्ति को भूख है लेकिन भोजन नहीं है तो वह गरीब है. वह दरिद्र नहीं है. गांधी ने दरिद्र शब्द का उच्चारण किया और गांधी ने जिसे दारिद्र कहा वो गरीब है दरिद्र नहीं है.

गांधी ने अपने जीवन काल में किसी बुद्ध का सन्न किया होता तो गांधी समझ पाते कि दरिद्र और गरीब में क्या अंतर है. ढूंढ़ के देखना ये गांधी का ही वचन था…दरिद्र नारायण…नारायण यानी ईश्वर और ईश्वर दरिद्र…ऐसा हो ही नहीं सकता है. मेरी दृष्टी में दरिद्र वो नहीं है. जिसके पास खाना नहीं है. बल्कि दरिद्र तो वो है जिसके पास खाना है लेकिन भूख नहीं है. क्योंकि उसका पेट तो पहले से ही भरा हुआ है. उसके भीतर भरा है…राग…द्वेष…लोभ..क्रोध..वैमनस्य…इस तरह की वस्तुओं से वह इतना भरा हुआ है कि उसके पास भूख ही नहीं है.

पृथ्वी का हर कोना आनंद से भरा हुआ है

जिस दिन खाली होकर बैठोगे और बुद्ध या प्रज्ञावान का सन्न करोगे. किसी ज्ञानी का सन्न करोगे. उसी दिन घटना घटेगी ये…खाली होकर बैठना..अभी तो तुम भरे हो. अपने अपने धर्मां के वचनों से…कोई हिंदुत्व से भरा है तो कोई इस्लाम..कोई सिख..कोई ईसाई..कोई बौद्ध तो कोई जैन…जिस दिन तुम खाली होकर बैठोगे. उस दिन घटना घटेगी और तुम आनंदित हो जाओगे. जब तुम्हारे अंदर रुपांतरण होता है तो तुम चारो ओर देखते हो कि यहां हर कण कण में आनंद भरा हुआ है.

पृथ्वी का हर कोना आनंद से भरा हुआ है. यहां कौवा भी नृत्य कर रहा है और कोयल भी संगीत गा रही है. बाहर की सृष्टी में रूपांतरण नहीं होता तुम्हारे भीतर रुपांतरण होता है. तुम्हारा ह्दय प्रेम से भर जाता है. सांसारिक दृष्टी से कहें तो तुम पागल हो जाते हो. बाहर वाला देखेगा तो कहेगा कि यह व्यक्ति पागल हो गया. लेकिन तुम्हारे भीतर से प्रेम छलकेगा. बस यही रुपांतरण होता है और कुछ भी नहीं होता.

यदि तुम्हें अच्छा लगता है ये रुपांतरण तो किसी बुद्ध का सन्न करो. किसी प्रज्ञावान का सन्न करो. कुछ क्षण खाली बैठो. यदि तुम्हें पागल नहीं बनना तो तुम उन्हीं धर्म स्थलों में जाते रहो. माथे टेककर स्वंय को संतुष्टी देते रहो कि तुम धार्मिक हो गये. तुम हिंदू हो..मुसलमान हो…सिख हो ईसाई हो…और कुछ भी नहीं.

आज केवल इतना ही…शेष किसी और दिन…अंत में चारों तरफ बिखरे फैले परमात्मा को मेरा नमन…तुम सभी जागो…जागते रहो…

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