मुक्ति क्या है बंधन क्या है?
तुम जिस मुक्ति की बात करते हो उसे खोजने से पहले ये देखो की बंधन क्या है?
मुक्ति का तात्पर्य क्या है?
मुक्ति यानि स्वतंत्रता, यानि बंधन मुक्त।
हर प्रकार के बंधन को अस्वीकार करना, ये ही मुक्ति है इस प्रकार तुम्हारा तथाकथित धर्म भी एक बंधन ही है।
किसी ने हिंदुत्व की किसी ने मुस्लिम की, किसी ने सिख की किसी ने ईसाई के नाम की, किसी ने किसी डेरे की किसी ने किसी मठ की बेड़िया बंधी हुई है।
तुम बंधन में लोहे की हथकड़ी पहनो या सोने की, बंधन तो बंधन ही है। कोई भी ये नहीं कह सकता की सोने की हथकड़ी बंधन नहीं है।
और न जाने कितने जन्मो से तुम इस तथाकथित धर्म और शस्त्रों के बंधन में हो।
और तो और तुम्हारे धर्म गुरुओ को भी इसका नहीं पता वह भी केवल पुरानी ही रीत जो चली आ रही है उसे ही ढो रहे है।
अब तक मुझे अनेक साधु संत पूछ चुके है कि क्या जो मार्ग हमने चुना है जिस पर हम पिछले अनेक वर्षो से चले जा रहे है क्या वो सही है या नहीं? अब इस उम्र में जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें क्या समझाया जा सकता है।
तुम देखो अपने धर्म के कार्य कलापो में क्या हो रहो है।
१० वर्ष का बच्चा धर्म ग्रन्थ शास्त्र रटना शुरू करता है और ७०-८० वर्ष का होते होते कोई मठाधीश बन जाता है कोई महामंडलेश्वर और कोई शंकराचार्य इतियादी । कोई पंडित कोई मौलवी कोई फादर कोई ग्रंथि।
लेकिन एक कृत्ये वो ही रहता है जो १० वर्ष कि अवस्था में भी था वो है शास्त्रों और ग्रंथो का दोहराना। उसमे कोई भी अंतर नहीं आता।
यानि पुरे जीवन में समझा कुछ भी नहीं जरा आंख खोल कर देखो।
देखो बुद्ध पुरुषो को, देखो बुद्ध को, महावीर को, मोहमद को जीसस को, नानक को कबीर को, सूर को मीरा को, चैतन्य को रै दास को इतयादि।
इन मुक्त पुरुषो ने, इन महापुरुषो ने क्या कुछ रटा था ?
नहीं।
इन महापुरुषो ने जागृत होने के बाद जो बोला था वो ही शास्त्र बन गए?
तुम्हारा तथाकथित धर्म तुम्हे सपने दिखता है बस। रास्ते का किसी को कुछ भी नहीं पता।
तुम्हारा रास्ता स्वयं तुम्हे स्वयं में से ही प्राप्त होता है शास्त्रों से नहीं। मेरे कहने का तात्पर्य गलत मत ले लेना में ये नहीं कह रहा हु कि तुम्हारे शास्त्र गलत है, में कह रहा हु शास्त्र तो वो है जो गवाही देते है कि मंजिल पर पहुंच कर उन शास्त्रों के रचइता को जो अनुभव हुआ वह कैसा था। ये शास्त्र तो तुम्हारी गवाही होंगे जब तुम उस मंजिल तक पहुंच जाओगे।
शास्त्रों से मंजिल तक पहुंचना ऐसा ही है जैसे कोई आम के गूदे से आम का वृष लगाने की कोशिश करे।
पेड़ तो गुढ़ली से ही लगेगा आम का गूदा तो उस पेड़ का फल है।
तुम ध्यान से देखना, बुद्ध का – महावीर का , मोहम्मद का-जीसस का, नानक का -कबीर का, मीरा का-सूर का, चैतन्य का- रै दास का रास्ता सभी का भिन्ह भिन्ह था लेकिन मंजिल पर पहुंच कर सबका आनंद एक सा प्रतीत होता है मंजिल पर सभी एक सामान ही नृत्य करते प्रतीत होते है।
एक और मजे कि बात ध्यान से देखना, इनमे से किसी का मार्ग तुम्हारे मंदिर मस्जिद गिरिजा गुरूद्वारे से होकर नहीं गया।
जरा आँख खोलो, उठो, जागो, देखो कि जो कृत्य धर्म के नाम पर तुम पूरा जीवन करे जा रहे हो क्या उसका कोई भी सम्बन्ध उस सत्य से है या उस धर्म से है जिसे इन महापुरुषों ने पाया? उत्तर तुम्हे स्वयं मिल जायेगा।
बोध का सम्बन्ध तुमसे है न कि तुम्हारे तथाकथित धर्म से और न है तुम्हारे धर्म ग्रंथो से।
इस बात को तुम जिस क्षण पहचान जाओगे उसी क्षण तुम जाग जाओगे। उसी क्षण तुम्हारा जागरण हो जायेगा।
इसलिए मैं कहता हूँ अभी भी समय है जागो! आंख खोलो देखो तुम कहा भागे जा रहे हो! देखो धर्म के नाम पर तुम क्या क्या पाखण्ड कर रहे हो।
ध्यान करो! जागो! जागते रहो!