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दुनिया भर में फैले अंध विश्वास ।

चीन में महिलाओ को लोहे का जूता पहनते थे

‘‘लोहे का जूता‘‘ या ‘‘पैरों को बांधना‘‘ एक ऐतिहासिक प्रथा थी, जो विशेष रूप से चीन में महिलाओं द्वारा प्रचलित थी। इस प्रथा का उद्देश्य महिलाओं के पैरों को छोटा और आकर्षक बनाना था, जिसे एक खास प्रकार की सुंदरता के रूप में देखा जाता था। हालांकि, इसे ‘‘लोहे का जूता‘‘ नहीं कहा जाता था, यह प्रथा मुख्य रूप से छोटे और सख्त पैरों के रूप में जानी जाती थी।

’’प्रथा की शुरुआत और इतिहासः’’

यह प्रथा प्राचीन चीन में लगभग 10वीं सदी के आसपास शुरू हुई थी और 20वीं सदी के मध्य तक चली। माना जाता है कि इस प्रथा की शुरुआत दक्षिणी और उत्तरी सोंग राजवंशों के दौरान हुई थी। इसे खास तौर पर उच्च वर्ग और राजघरानों में महिलाएं अपनाती थीं, क्योंकि यह एक प्रकार की सामाजिक स्थिति और शिष्टता का प्रतीक था।

’’कैसे किया जाता था पैर बांधनाः’’

पैरों को बांधने की प्रक्रिया बहुत दर्दनाक होती थी। जब लड़की छोटी होती थी (आमतौर पर 5-7 वर्ष की आयु में), तब उसके पैरों को मोड़ कर छोटे आकार में रखने के लिए बांस की पट्टियाँ या कपड़े का उपयोग किया जाता था। पैरों के अंगूठे को मोड़ कर अन्य अंगुलियों से जोड़ दिया जाता था और इसके बाद पूरी पैर की संरचना को सख्त किया जाता था। इस प्रक्रिया के दौरान लड़की को अत्यधिक दर्द सहन करना पड़ता था, और कभी-कभी संक्रमण या विकृति भी होती थी।

’’आकर्षकता और सामाजिक मान्यताएँः’’

यह माना जाता था कि छोटे पैरों वाली महिलाएं अधिक सुंदर, सभ्य और शिष्ट होती थीं। इसे ‘‘कमल के फूल‘‘ के आकार के रूप में भी देखा जाता था, क्योंकि छोटे पैरों को फूलों की कोमलता से जोड़ा जाता था। यह प्रथा विवाह के लिए भी आवश्यक मानी जाती थी, क्योंकि उच्च वर्ग के पुरुषों के लिए छोटे पैर वाली महिलाएं आकर्षक और आदर्श होती थीं।

’’प्रथा का अंतः’’

20वीं सदी के प्रारंभ में, खासकर 1911 में, चीन में यह प्रथा धीरे-धीरे खत्म होने लगी। जब चीन में सुधारात्मक आंदोलनों का दौर चला और महिलाएं समान अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगीं, तो इस प्रथा को अपमानजनक और अमानवीय माना गया। 1949 में चीन के साम्यवादी शासन के तहत इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, और बाद में इसे पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया।

ये दृष्टान्त मैंने क्यों दिया ?

क्योकि तुम सभी का तथा कथित धर्म भी बिलकुल ऐसा ही अंध विश्वास है। जीवन से बढ़कर कोई धर्म , कोई भगवन , कोई खुदा नहीं है। जीवन से प्रेम करो। अपने और दूसरे के जीवन का सम्मान करो। और जितना जल्दी हो सके अपने जीवन से , मस्तिष्क से मंदिर , मस्जिद , गिरजे , गुरूद्वारे को तिलांजलि दे दो।

धर्म को प्राप्त करने के लिए इस वीडियो को १० बार देख ले।

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